नक्लवाद और आंतकवाद को खत्म करने के लिए बनायी गयी योजनओं की समीक्षा क्यो नही करती सरकारें
जवानों की तैनाती से ना ही नक्सलवाद और ना ही आंकतवाद समस्या का समाधान होगा?
जम्मू कश्मीर में आंकतवाद को खत्म करने के लिए मोदी सरकार ने नोटबंदी की, इसके बाद धारा 370 को हटाने के साथ ही जम्मू कश्मीर को दो भाग करके केंद्रशासित प्रदेश बनाने के बाद भी आंकतवाद खत्म नही हुआ, बल्कि सुनियोजित तरीके से अंाकतवादियों द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने से कश्मीर पंडित जिन्होंने 1990 में पलायन नही किया था वह भी पलायन करने के मजबूर हो गये है। आंतकी घटनाओं के दौरान ही गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर का दौरा करके वहां का हालातों का जायज लेने के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस को कानून-व्यवस्था बनाए रखने और आंतकवाद विरोधी अभियान चलाने में मदद करने के लिए 5 हजार अतिरिक्त अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गयी है। जिसमें से आधे से ज्यादा की तैनाती कश्मीर में की गयी है। गौरतलब है कि बस्तर में नक्सलवाद और जम्मू कश्मीर में आंतकवाद के खिलाफ लड़ाई बगैर जनता के सहयोग के नही जीती जा सकती है, लेकिन जनता को अपने पक्ष में करने के लिए सरकारों के द्वारा बनायी गयी योजनाओं के बाद भी जनता का विश्वास क्यों नही जीत पा रही है, इसकी भी समीक्षा करने की जरूरत है।
जम्मू कश्मीर में आंकतवाद रोधी अभियानों के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की लगभग 70 हजार जवान पहले ही तैनात है। इसके बाद 50 कंपनियों की और तैनाती की जाना यही संकेत दे रहा है कि बड़ी संख्या में जवानों की तैनाती के बाद भी कश्मीर में आंकतवादी घटनाओं पर लगाम नही लग पायी है। उल्लेखनीय है कि बस्तर में भी बड़े पैमाने पर केंद्रीय बलों की तैनाती के बाद भी नक्सली समस्यां को खत्म नही किया जा सका है बल्कि जवानों की तैनाती से कही ना कही ग्रामीण और पुलिस के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बस्तर की तरह ही जम्मू कश्मीर में सिर्फ जवानों के तैनाती के बल अपनी पकड़ स्थाई तौर पर नही बनायी जा सकती है इसके लिए जनता का विश्वास जीतना होगा, लेकिन अहम बात यह है कि सरकारों के द्वारा जनता का विश्वास जीतने के लिए ही मोदी सरकार ने नोटबंदी के बाद कश्मीर से धारा 370 को हटाने के बाद भी जनता का भरोसा क्यों नही जीत सकी, मोदी सरकार ने धारा 370 को हटाने व नोटबंदी के दौरान किये गये वादे धरातल में कितने सफल हुई, इसकी समीक्षा करनी चाहिए, क्योंकि जनता का विश्वास जीते बगैर इस समस्या का समाधान नही हो सकता है। अहम सवाल यह है कि अगर सरकारी सुविधाओं का लाभ आम जनता को मिल रहा है तो फिर वह सरकार की कार्यशैली से क्यो नाराज है इसका भी आंकलन करना चाहिए। बस्तर क्षेत्र जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय सीमा से जूडा नही है इसके बाद भी पुलिस बल जनता का भरोसा क्यों नही जीत पायी है? जम्मू कश्मीर क्षेत्र तो अंतरराष्ट्रीय सीमा के चलते और भी विवादित क्षेत्र है इसलिए वहां पर सरकार को जनता को विश्वास में लेकर ही बड़ा फैसला लेना चाहिए क्योकि एक गलत फैसला बड़ा विवाद पैदा कर सकता है। धारा 370 को बगैर कश्मीरी जनता के समर्थन से हटाना से समस्या खत्म होने की जगह उसका विस्तार तो नही हुआ है इसकी समीक्षा की भी जरूरत है।
कश्मीर नेताओं की बैठक का कोई नतीजा नही निकला
मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर में धारा 370 को हटाने के बाद दिल्ली में कश्मीर नेताओं से चर्चा की, जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय भी बना लेकिन इस बैठक के बाद जिस तरह से ज म्मू कश्मीर मेंं आतंकवादियों की घटनाओं का वृद्धि होना स्पष्ट करता है कि इस बैठक का भी कोई लाभ नही हुआ। क्योकि बैठक में कश्मीर के नेताओं ने धारा 370 को हटाने की मांग करने के साथ ही जल्द चुनाव कराने की भी मांग की थी। जम्मू कश्मीर में चुनाव कब होगा इस पर भी सस्पेंस कायम है, मोदी सरकार परिसीमन के बाद चुनाव कराने की बात कह रही है लेकिन परिसीमन कब तक चलेगा यह भी ऐसा सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नही है।