राहुल गांधी, ढ़ाई ढ़ाई फार्मूले के तहत सीएम बनाये जाने के बाद भी अभी तक यह फार्मूला नही लागू कर सके
छत्तीसगढ़ में ढ़ाई ढ़ाई साल फार्मूला के सार्वजनिक हो जाने के बाद भी कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी मामले का टालने की हर संभव कोशिश के कारण गुटबांजी का विस्तार हो रहा है। वही दूसरी तरफ त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव देव को भाजपा आलाकमान ने बगैर कोई फार्मूले के हटा कर माणिक साहा को मुख्यमंत्री बना दिया, पार्टी के अंदर जरूर कुछ नेता इस बदलाव से नाराज हुए लेकिन कोई बड़ा विवाद नही होना ही बताता है कि कांग्रेेस और भाजपा मेंं कितना बड़ा अंतर है। गौरतलब है कि उत्तराखंड में भी भाजपा ने कई सीएम बदलने के बाद भी पार्टी में कोई तोडफ़ोड नही हुई लेकिन पंजाब में कांग्रेस द्वारा यही प्रयोग करने से मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने नई पार्टी का गठन करने में देरी नही लगाई।
ढ़ाई ढ़ाई साल का फार्मूला लागू होने की उम्मीद अभी भी कायम है टीएस सिंहदेव को
राहुल गांधी कांग्रेसी नेताओं का भरोसा नही जीत सके, तो जनता का भरोसा कैसे जीत सकेंगे ?
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव देव के कई विवादित बयान सुर्खियों में रहे, जिसमें महाभारत काल में इंटरनेट और सैटेलाइट सेवा होने की बात कही थी, लेकिन उस वक्त भाजपा आलाकमान ने उन्हें सीएम पद से नही हटाया, लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अचानक विप्लव देव को मुख्यमंत्री से हटा कर उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष व राज्य सभा सांसद माणिक साहा को मुख्यमंत्री बना दिया, अचानक हुए इस बड़े बदलाव के बाद भी पार्टी के अंदर कोई बड़ा विवाद नही होना बताता है कि भाजपा आलाकमान के इस फैँसले से नाराज नेताओं को यह विश्वास है कि बगावत करके भी वह पार्टी का किसी भी तरह का नुक्सान नही पहुंचा सकते है, इसलिए चुपचाप रहना ही ठीक है। इसके ठीक उलट छत्तीसगढ़ में ढ़ाई ढ़ाई साल के फार्मूले के तहत सत्ता सौंपने की बात सार्वजनिक हो जाने के बाद भी विगत एक साल से यह विवाद कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है, इसके बाद भी राहुल गांधी इस विवाद का पटाक्षेप करने की जगह इसे लम्बा खीचने की कोशिश कर रहे है, जबकि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का बचे ढेड़ साल के समय में भी मानना है कि यह फार्मूला लागू होगा। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी को इस बात का एहसास है कि मुख्यमंत्री बदलाने से कही पंजाब की तरह ही कांग्रेस छत्तीसगढ़ में विभाजन हो सकता है, लेकिन उनके फैसले को टालने से भी कही ना कही पार्टी विभाजन की तरफ ही बढ़ रही है। जैसे भाजपा नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विश्वास है वैसा विश्वास राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के ेनेताओं में भी पैदा नही कर पाये है तो देश की जनता के बीच कैसे पैदा करेंगे? भाजपा और गोदी मीडिया भी राहुल गांधी की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर देश की जनता के सामने यह सवाल पैदा करती रहती है कि नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी में कौन? और इसी खेल में जनता भी फँस जाती है, जिसका फायदा भी भाजप को मिल रहा है।