जिन उद्देश्यों को लेकर नोटबंदी की गई थी, वह सभी समस्या आज पहले से ज्यादा गंभीर बन गई है
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को नोटबंदी पर बताया कि यह टैक्स चोरी रोकने और काले धन पर लगाम लगाने के लिए लागू की गई सोची समझी योजना थी, नोटबंदी से नकली नोटों की समस्या से निपटना और आंतकवादियों की फंडिग को रोकना भी मकसद था, लेकिन सवाल यह हे कि क्या नोटबंदी अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल रही? क्योकि सरकार का दावा है कि इसे काफी चर्चा और तैयारी के बाद लागू किया गया था। सवाल यह है कि नोटबंदी अगर तैयारियों के साथ लाया गया था तो नोटबंदी के नियमों में तेजी से बलदाव करने की जरूरत क्यों पड़ गई थी, नोटबंदी के बाद नियमों में हुए बदलाव ही इस बात का प्रमाण है कि केंद्र सरकार ने आनन फानन में नोटबंदी लागू की और इसके बाद जैसे जैसे समस्याएं पैदा होने लगी, वैसे वैसे नियमों में बदलाव किये जाने लगें। भाजपाई चुनावो में जिस तरह से कश्मीर में धारा 370 को हटाने के नाम पर वोट मांगते है, उसी तरह ही नोटबंदी से मिली उपलब्धियों के नाम पर वोट मांगते नही दिखाई देते है जो बताता है कि भाजपाई को भी नोटबंदी के लाभ नही मालूम है जो वह जनता को बता सकें।
गुजरात विधानसभा चुनाव के पूर्व मोदी सरकार की नोटबंदी योजना की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ने भी भाजपा सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है, क्योकि नोटबंदी जिन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया गया था वह धरातल में पूरी तरह से फेल हो गया है क्योकि ईडी व सीबीआई आये दिनों छापे मारी के कार्यवाही में करोड़ो रूपये का काला धन बरामद कर रही है, जो बताता है कि नोटबंदी के बाद भी कालाधन पर लगाम नही लग पाई। उसी तरह ही नकली नोट भी गुजरते समय से साथ एक बार फिर भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति पूर्व की तुलना में और मजबूूती से दर्ज कराने में सफल होते दिखाई दे रहे है और ना ही आंतकवादियों की फंडिग पर भी लगाम लग पाई है, ऐसे में सवाल तो उठता है कि अगर नोटबंदी योजना पूरी तैयारियों के साथ लागू होती तो वह अपने उद्देश्य को कुछ हद तक पूरा करने में कामायाब होती। जिसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास मोदी सरकार के नेता करते, लेकिन हालात यह है कि नोटबंदी का उल्लेख करने से भी भाजपाई बचते दिखाई देते है। यह जरूर है कि नोटबंदी के बाद जिस तेजी से नियमों में बदलाव सरकार ने किया उससे यह बात स्पष्ट हो गया कि नोटबंदी के लिए कोई मंथन नही किया गया था, लॉकडाऊन की तरह ही नोटंबंदी लागू होने के बाद मंथन की प्रक्रिया शुरू हुई। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी में दिया गया सुप्रीम कोर्ट को जवाब निश्चित ही गुजरात विधानसभा चुनाव में परेशानी पैदा कर सकता है क्योकि तैयारी के साथ शुरू की गई योजना में इतने झोल नही हो सकते है, यह बात गुजरात ही नही देश की जनता को भी पता है।