आजाद देश में लोगों की सोच भी आजाद होनी चाहिए,
देश आज स्वतंत्रता के 74 वीं वर्षगांठ मना रहा है, इन 74 सालों में देश का लोकतंत्र कितना मजबूत हुआ है इसका प्रमाण मानसून सत्र में देश व दुनिया ने देखा, कि विपक्ष किसान मुद्दे के साथ ही पेगासस जासूसी मामले की जांच कराने की मांग करता रहा लेकिन मोदी सरकार ने उनकी मांगों को सिरे से खारिज करते हुए सदन नही चलने के लिए विपक्ष को जिम्मेदार बता कर अपना दामन साफ कर लिया। जो बताता है कि विपक्ष की आवाज को लोकतंत्र में दबाने का प्रयास किया जा रहा है। मोदी सरकार ने इंश्योरेंस बिल को पास कराने के लिए राज्य सभा मेें जिस तरह से मार्शलों का उपयोग किया वह भी बताता है कि सत्ता दल विपक्ष को आवाज को दबाने के नये नये तरीके इजाद कर रहा है, निश्चित ही भविष्य की सरकारें भी इसी पदचिन्हों पर चलते हुए काम करेगी? क्या ऐसे में देश का लोकतंत्र होगा? देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसान विगत नौ महीने से सडक़ों में आंदोलन कर रहे है और मोदी सरकार उनसे बातचीत तक करने को तैयार नही है, इस तरह की हठधर्मिता से कैसे लोकतंत्र की जड़े मजबूत होगी? राफेल सौदे में हुए गोलमाल की देश में कोई जांच नही हो रही है जबकि फ्रांस सरकार द्वारा इस सौदे की जांच होना स्पष्ट करता है कि देश में पारदर्शिता को खत्म किया जा रहा है। बैंक के कर्जदार देशवासियों को पैसों का चूना लगा कर भाग रहे है। मोदी सरकार में देश विरोध कानून का भरपूर इस्तेमाल किया गया जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाये, जो बताता है कि सरकारें विरोधियों की आवाजों को दबाने का हर संभव प्रयास कर रही है। वही नेता अपने प्रचार के लिए हर सरकारी योजना में अपनी फोटो छपाने की चाहत रखने लगे है, जिसका विस्तार यहां तक हो गया है कि कोविड वैक्सीन सर्टिफिकेट में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटे लगायी जाने लगी है, दूनिया के किसी अन्य देश में वहां के नेता का फोटो सर्टिफिकेट में लगाने का मामला सामने नही आया है। इसके साथ ही अपनी पार्टी की सरकारों की तारीफ करने का नया रिवाज तेजी से बढ़ता जा रहा है, चाहे वह ठीक तरीके से काम नही भी कर रही हो। स्वतंत्रता की लड़ाई लडऩे वालों ने क्या देश को इसलिए आजादी दिलायी थी कि सत्ता में बैठने वाले नेता आम जनता की समस्याओं को सुनने की जगह अपनी मर्जी से काम करके जनता की परेशानियों को बढ़ाये। 15 अगस्त 1947 को देश जरूर आजाद हो गया था लेकिन देश में रहने वाले करोड़ो लोग आज भी भूख ,इंसाफ, भ्रस्टाचार, जातिवाद, कूप्रथा की आजादी से मुक्ति पाने के लिए अपने स्तर पर लड़ाई लड रहे है लेकिन सरकारें आम जनता की इन समस्याओं के निराकरण करने की जगह धर्म की लड़ाई में लोगों को उलझा कर उनकी समस्याओं से भटकाने का प्रयास कर रही है। देश जरूर आजाद हो गया है लेकिन देशवासियों की सोच को अभी आजादी नही मिली है, जब तक सोच को आजादी नही मिलती है तब तक 15 अगस्त की आजादी का कोई मतलब नही।