सिलगेर के पीडि़त परिवार को मुआवजा के साथ शासकीय नौकरी भी अभी तक मिल गयी होती
सिलगेर को भाजपा ने राजनीतिक मुद्दा क्यो नही बनाया, क्या उन्हें आदिवासियोंं की चिंता नही है? उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी में राहुल गांधी व प्रियंका गांधी की सक्रियता भाजपाई को पसंद नही आ रही है, जिसकों देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने कहा को दक्षिण बस्तर में पुलिस कैंप के विरोध में घटी वारदात याद आयी और उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अगर इतनी ही संवेदनशील है तो अब तक राहुल गांधी, प्रियंका गांधी व भूपेश बघेल सिलगेर क्यो नही गये। उन्हें अभी तक आदिवासियों की याद नही आयी। सवाल यह है कि राज्य में कांगे्रेस की सरकार होने के कारण कांग्रेसी नेताओं ने सिलगेर से दूरी बनायी, लेकिन भाजपा जो राज्य में प्रमुख विपक्षी दल है के बड़े नेता क्यो सिलगेर नही गये और लखीमपुर खीरी की तरह ही सिलगेर मामले का राजनीतिकरण करने का प्रयास क्यो नही किया। राजनीतिक जानकारोंं का कहना है कि सिलगेर में मारे गये आदिवासियों के प्रति अगर भाजपा संवेदनशील होती तो निश्चित ही लखीमपुर खीरी की तरह ही सिलगेर पर राजनीति करके इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा बना सकती थी लेकिन ऐसा क्यो नही किया भाजपा वालों ने इसका जवाब तो हर कोई जानना चाहता है। भाजपा ने सिलगेर मामले पर लगभग एक पखवाड़े के बाद किसी तरह जांच दल का गठन तो किया लेकिन अभी तक सिलगेर की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नही की है। जिससे यह स्पष्ट हो सके कि सिलगेर में मारे गये लोगों को भाजपा ग्रामीण मानती है या नक्सली। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जरूर कहा है कि सिलगेर में निर्देश आदिवासी मारे गये है लेकिन इसके बाद भी भाजपा सिलगेर मामले पर लखीमपुर खीरी की तरह आक्रामक क्यो नही हो सकी? जिसकी वजह से अभी तक सिलगेर में पीडि़त पक्षों को इंसाफ नही मिल सका है, जबकि वह इंसाफ की लड़ाई अपने स्तर पर आज भी लड़ रहे है।
भाजपा के नेता सिलगेर मामले को उठा कर जरूर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ ही राहुल गांधी व प्रियंका गांधी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे है लेकिन अगर भाजपा के नेता सिलगेर मामले पर लखीमपुर खीरी की तरफ ही राजनीति की होती तो निश्चित ही सिलगेर में पीडि़त परिवार को लखमीपुर खीरी की तरह शासकीय मुआवजा व शासकीय नौकरी मिल चुकी होती।