डॉलर के मुकाबले रूपया भी पहुंचा सबसे निचले स्तर पर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष मे रहते डॉलर को गिरने को देश के स्वाभिमान के गिरने से जोड़ते थे, उस मोदी सरकार में रूपया डॉलर के मुकाबले एतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच जाना बताता है कि डॉलर के मुकाबले रूपये की गिरावट सिर्फ जनता को वोट पाने का एक साधन मात्र है क्योकि मोदी सरकार के पास भी डॉलर के मुकाबले रूपये को मजबूत करने की कोई योजना नही थी। जिसके चलते आठ साल के बाद रूपया डॉलर के मुकाबले एतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया है, जिसमें आने वाले दिनों में और भी गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष में रहते मनमोहन सरकार को जिस महंगाई, और डॉलर के मुकाबले रूपये के गिरावट जैसे मुदृदे पर घेरते थे, आज वही मुद्रदे मोदी सरकार को ही आंख दिखा रहे है और मोदी सरकार कुछ भी नही कर पा रही है। मनमोहन सिंह सरकार में डॉलर के मुकाबले रूपये की गिरावट को मुद्दा बनाया था जिसका लाभ भी मिला, लेकिन मोदी सरकार में डॉलर आज रूपये एतिहासिक 77.13 तक पहुंच जाना साफ संकेत देता हे कि भाजपा ने सिर्फ जनता से वोट पाने के लिए ही डॉलर के मुकाबले रूपये के गिरने को मुद्दा बनाया उसी तरह ही पेट्रेाल और एलपीजी के बढ़़ते दामों को लेकर भाजपा ने मनमोहन सरकार को घेर कर ऐसा माहौल बनाया कि मोदी सरकार आने के बाद पेट्रेाल व एलपीजी के दामों में कमी आयेगी लेकिन मामला पूरी तरह से उलटा पड गया, मोदी सरकार के आठ सालों मेें पेट्रोल के दाम जहां दोगुना हो गये वही एलपीजी के दामों में दो गुना से ज्यादा वृद्धि हो जाने के बाद भी विपक्ष मंहगाई के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने में पूरी तरह से असफल साबित हुई। मोदी सरकार ने महंगाई, बेरोजगारी, जैसे अहम मुद्दों को राष्ट्रवाद, हिन्दुत्व के मुद्दे के नीचे दफन करने में सफल रही, जिसके चलते आम जनता भी महंगाई व बेरोजगारी की जगह राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ही बातचीत करती दिखाई देती है। मोदी सरकार की इस रणनीति को सफल बनाने में अहम भूमिका गोदी मीडिया निभाती है, जिसकी वजह से आम जनता के मुद्दे राजनीति पटल से गायब होते जा रहे है।