21 बार बढ़ाया जा चुका का आयोग का कार्यकाल
विधानसभा चुनाव में कांग्र्रेस का अहम मुद्दा था झीरम घटना
झीरम जांच रिपोर्ट पर राजनीति जारी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा न्यायिक आयोग का कार्यकाल 6 महीने बढ़ाने की घोषणा के बाद राज्यपाल अनुसुईया उइके ने जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को भेज दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आधी अधूरी रिपोर्ट होने के कारण सार्वजनिक नही की जायेगी। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस सरकार में न्यायिक जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक हो पायेगी? वही न्यायिक जांच आयोग ने राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपने की जगह क्यो राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी यह ऐसा सवाल है जो आम जनता के साथ ही राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा का विषय बन गया है।
राज्य सरकार ने झीरम न्यायिक जांच आयोग में दो नये सदस्यों की नियुक्ति करने के साथ ही आयोग का कार्यकाल 6 महीने बढ़ाने की घोषणा करने के साथ ही तीन नये बिन्दू जांच में जोडऩे के अगले दिन ही राज्यपाल ने जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी। उल्लेखनीय है कि न्यायिक जांच आयोग ने आठ साल बाद जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपने की जगह राज्यपाल को सौंपे जाने के बाद राज्य में राजनीति गर्माने लगी, दोनों पक्षों से इस मामले पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति जम कर हुई, लेकिन रिपोर्ट सार्वजनिक होने से पहले ही राजनीति का शिकार हो गयी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बताया कि अधिकारियों ने जानकारी दी है कि अधूरी रिपोर्ट सौपी गयी है, यदि रिपोर्ट पूरी होती तो एक्शन टेकन रिपोर्ट के साथ उसे भी विधानसभा के पटल में रखा जाता हैं। लेकिन इस बीच राज्य सरकार की ओर से दो सदस्यीय समिति का गठन किया गया है जो अधूरी जांच को पूरी करेगी। गौरतलब है कि न्यायिक जांच का कार्यकाल आठ सालों में 20 बार बढ़ाया जा चुका है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विधान सभा चुनाव में झीरम घटना कांग्रेस का अहम मुद्दा था, कांग्रेसियों से इसे राजनीतिक षडयंत्र करार देते हुए दोषियों को सजा दिलाने का भी वादा किया था, ऐसे में शेष बचे दो साल के अंदर न्यायिक जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक नही होती है तो कांग्रेस पर भी सवाल उठने लगेंगे। इसलिए जरूरी है कि न्यायिक जांच आयोग का कार्यकाल बार बार बढ़ाने की जगह जांच निर्धारित 6 महीने में पूरा करके रिपोर्ट को सार्वजनिक करें ताकि जनता को भी मालूम चले कि जांच में क्या निकाला।