खिलाडिय़ों के लिए कोच की सुविधा तक उपलब्ध नही करा सकी है सरकारें
साधारण पत्थर को भी कलाकार मुर्ति में तब्दिल कर देता है, लेकिन बस्तर के प्रतिभावान खिलाडिय़ों को तराशने वाला सही कोच नही मिल पाने के कारण प्रतिभाएं दम तोड़ रही है, उनमें से एक खिलाड़ी मोती लाल पोयाम है। आर्थिक रूप से बेहद कमजोर घर से आने वाले पोयाम 5 व 10 किलोमीटर पैदल चाल में एक दर्जन से ज्यादा बार राज्य का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी वह अपनी पहचान बना पाने में असफल रहे है। उन्होनें बताया कि पूणे में आयोजित 10 किलोमीटर चाल में उन्होंने रजत पदक जरूर जीता लेकिन बस्तर में कोच की सुविधाओं का भारी अभाव के कारण ही खिलाड़ी आगे नही बढ़ पाते है। उन्होंने कहा कि बस्तर में प्रतिभाओं की कमी नही है लेकिन 12 वीं के बाद खिलाडिय़ों को सरकारी सुविधाएं नही मिलने के कारण प्रतिभाएं गूम हो जाती है। उन्होंने कहा कि कॉलेज स्तर पर भी खिलाडिय़ों के लिए क्रीड़ा परिसर की तरह से सुविधाएं होनी चाहिए ताकि खिलाड़ी अपना खेल को जारी रख सके। मोतीलाल पोयाम ने बताया कि बस्तर के खिलाडिय़ों को ना ही अच्छी ट्रेनिंग मिल पाती है और ना ही बाहर खेलने जाने के लिए पैसा ही उपलब्ध हो पाता है, खिलाडिय़ों को अपने खर्च पर जाना पड़ता है। आर्थिक रूप से कमजोर खिलाड़ी के आगे बढऩे के रास्ते बस्तर में बहुत ही कम है, क्योकि ना उन्हें बेहत्तर भोजन ही उपलब्ध हो पाता है और ना ही खेल की बारीकियों को बताने वाला ही कोई मिलता है। वर्तमान सुविधाओं में बस्तर से कोई खिलाड़ी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना पायेगा इसकी संभावनाएं मोतीलाल को बहुत ही कम नजर आती है। उल्लेखनीय है कि नेता व अधिकारी दावा करते है कि बस्तर में खेल प्रतिभाओं की कोई कमी नही है लेकिन खेल में रूचि रखने वाले खिलाडिय़ों को ना ही बेहत्तर कोच ही स्वतंत्रता के 7 दशक बाद सरकारें उपलब्ध करा सकी है और ना ही बस्तर में प्रतिभावान छात्रों के लिए कॉलेज स्तर पर क्रीड़ा परिसर ही खोल सकी। ऐसे हालातों में बस्तर का खिलाड़ी कैसे आगे बढ़ेगा। मोतीलाल पोयाम की तरह अनेकों खिलाड़ी जो राष्ट्रीय स्तर तक अपने दम पर पहुंचे है लेकिन उसके बाद उनके खेल कैरियर को पूर्ण विराम लग जाता है।