उत्तरप्रदेश में भाजपा, राम के सहारे तो सपा ने लिया कृष्ण का सहारा
दिल्ली चुनाव में आप ने राम भक्त हनुमान का लिया था सहारा, तो ममता बेनर्जी ने किया दुर्गा पाठ
राजनीतिक दल अपने फायदों के लिए भगवान का सहारा लेने लगे है, इसके बाद से राजनीतिक दलों मेेंं ही नही भगवानों में भी बटवांरा होता दिखाई दे रहा है, जिस पर चुनाव आयोग को रोक लगानी चाहिए अन्यथा देश में हर राजनीतिक पार्टी के अपने अपने भगवान होगें? दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भगवान राम का सहारा लिया तो आम आदमी पार्टी ने राम भक्त हनुमान का सहारा लिया, बंगाल चुनाव में एक बार फिर यही देखने को मिला, भाजपाई जहां जय श्री राम के नारे लगा रही थी, वही ममता बेनर्जी ने दुर्गा पाठ करके भाजपा की इस रणनीति का तोड़ निकाला। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में एक बार फिर राजनीतिक दल अपने चुनावी वैतारणी को पार कराने के लिए भगवानों का ही सहारा ले रहे है। भाजपा राममंदिर के सहारे भगवान राम पर वोट मांगने की तैयारी है तो समाजवादी पार्टी ने भाजपा की इस रणनीति में सेंधमारी करने के लिए भगवान कृष्ण के नाम पर वोट मांगने की योजना पर काम कर रही है। सवाल यह है कि विधानसभा चुनाव में जनता किसे वोट देकर सत्ता तक पहुंचाती है, लेकिन किसी एक भगवान जिनका राजनीति से कोई लेना देना नही हेै उन्हें हार का सामना करना पड़ेगा, क्योकि हिन्दू वोटों के लिए भगवानों के बीच मतभेद पैदा करने का प्रयास राजनीतिक दलों के द्वारा किया जा रहा है। जिस तरह से नेता अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए राजनीतिक दल भगवानों की फोटो को अपने राजनीतिक पोस्टरों में उपयोग कर रहे है, उससे कही ना कही भगवानों को बंटाने की कोशिश है, लेकिन हिन्दुत्व का झंडा उठाने वाले संतो व साधुओं के द्वारा चुनावी पोस्टर व सभाओं में भगवान के सहारे लेने का विरोध नही किया जाता है, जिसकी वजह से इस परंपरा का विस्तार होता जा रहा है। चुनावों में राजनीतिक दल आमने सामने होने के साथ ही साथ भगवान भी आमने सामने होने लगे है। समय रहते इस पर अगर लगाम नही लगायी गयी तो नेता अपने हितों के लिए भगवानोंं को ही लड़ाने में परहेज नही करेगें, क्योकि वह सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते है। वही जनता को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा भगवानों के नामों पर वोंट मांगने की जो नई परंपरा को बढ़ावा ना दें, क्योकि इससे कही ना कही लोगों की आस्था पर भी ठेस पहुंच रही है, क्योकि भगवान सभी के है, किसी राजनीतिक दल के नहीं, लेकिन जिस तरह से चुनावों में भगवानों का उपयोग अपने जनाधार को बढ़ाने में किया जा रहा है उससे भगवान भी बंटते दिखाई रहे है, जैसे राजनीतिक दल के नेता बटेंं हुए है देश में।