राफेल सौंदे की आंच सीबीआई और ईडी तक पहुंची,
मीडियापार्ट की रिपोर्ट का दावा कि 65 करोड़ रूपये भारतीय बिचौलियों को मिलने के सबूत सीबीआई और ईडी को अक्टूबर 2018 से थी
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के पूर्व राफेल सौंदे पर मीडियापार्ट ने रिपोर्ट मोदी और योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाली है, क्योकि रिपोर्ट के अनुसार राफेल सौंदे में बिचौलियों को 65 करोड़ रूपये की घूस देने की जानकारी सीबीआई और ईडी दोनों को होने के बाद भी इस मामले पर मौन साधे हुए थे, ताकि इस डील पर किसी भी तरह का विवाद पैदा ना हो। गौरतलब है कि बंगाल विधानसभा चुनाव के पूर्व राफेल सौदें में हुए गोलमाल पर फ्रंास सरकार ने एक फ्रांसीसी न्यायाधीश को नियुक्त करके मोदी सरकार की इमेज को नुक्सान पहुंचाया था।
बोफोर्स घोटाला जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का दामन नही छोड़ा, उसी तरह ही प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी का दामन राफेल विमान सौंदा नही छोड़ रहा है। राफेल सौंदे पर देश में राजनीतिक पारा ठंडा है लेकिन जिस फ्रांस से यह विमान खरीदा गया है, वहां पर राफेल सांैदे की नई नई परतें खोल कर मीडियापार्ट मोदी सरकार की परेशानियों को बढ़ा रहा है। मीडियापार्ट का ताजा खूलासा यह बताता है कि सीबीआई और ईडी को बिचौलियों के 65 करोड़ रूपये घूस लेने की जानकारी होने के बाद भी इस मामले पर कुछ नही किया। जिसके ईडी और सीबीआई की विश्वसनीयता पर भी सवाल गहराने लगे है, क्योकि देश में इन सस्थानों के डर से मोदी सरकार का विरोध करने का साहस नही कर पा रहे है।
भारतीय बिचौलियां की जानकारी सीबीआई को थी
ऑनलाइन पत्रिका मीडियापार्ट ने फेक इनवॉयस पब्लिश करते हुए दावा किया कि फ्रांसीसी विमान निर्माता डसॉल्ट एविएशन ने इस डील के लिए भारतीय बिचौलिए को कम से कम 65 करोड़ रूपये दिए गए, ताकि कंपनी भारत के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों का सौंदा हासिल कर सके। रिपोर्ट के अनुसार डसॉल्ट ने ये पैसे भारतीय बिचौलिया सुशेन गुप्ता को दिए थे। जिसकी जानकारी सीबीआई और ईडी को भी थी, लेकिन इन एजेंसियों ने इस मामले पर कोई भी एक्शन नही लिया। रिपोर्ट के अनुसार इसमें ऑफशोर कंपनियां, संदिग्ध अनुबंध और झूठे चालान शामिल है। भारत की संघीय पुलिस बल, केंद्रीय जांच व्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय के सहयोगियों के पास, अक्टूबर 2018 से सबूत हैं कि डसॉल्ट ने कम से कम 65 करोड़ का भुगतान किया है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस राफेल सौंदे पर मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता रहा है लेकिन राष्ट्रहित का जूडा मुद्दा बता कर मोदी सरकार इस मामले को देश में दफन करने में जरूर कामयाब हो गयी लेकिन फ्रंास में यह मामला सुर्खियों में बना हुआ है, जिससे मोदी सरकार की इमेज प्रभावित हो रही है। गौरतलब है कि मीडियापार्ट ने अर्पैल में जारी अपनी रिपोर्ट में राफेल सौेंदे को संदिग्ध , भ्रष्टाचार और पक्षपात की जांच के लिएउ एक फ्रांसीसी न्यायाधीश को नियुक्त किया गया था। अप्रैल 2021 की रिपोर्ट में ऑनलाइन जर्नल ने दावा किया था कि उनके पास ऐसे दस्तावेज है जिसमें दिखाया गया है कि डसॉल्ट और उसके औद्योगिक साझेदार थेल्स, एक रक्षा इलेक्ट्रॅनिक्स फर्म ने बिचौलिए गुप्ता को सौदे के संबंंध में गुप्त कमीशन में कई मिलियन यूरो का भूगतान किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश पैसा 2013 से पहले दिए गए थे, 2004-2013 में सिंगापुर में एक शेल कंपनी इंटरदेव को 14.6 मिलियन यूरो दिए गए। वह कंपनी भी गुप्ता से ही संबंधित है, रिपोर्ट में गुप्ता से संबंधित एक अन्य अकांउट स्प्रैडशीट के अनुसार थेल्स ने दूसरी शेल कंपनी को 2.4 यूरों का भुगतान किया था। रिपोर्ट के अनुसार डसॉल्ट ने राफैल जेट के 50 बड़े प्रारूप के निर्माण के लिए गुप्ता को 1 मिलियन यूरों का भुगतान किया था, हालांकि इस बात का सबूत नही है कि ये मॉडल बनाए गए थे। डसॉल्ट द्वारा बनाए एक 36 राफेल युद्धक विमानों की खरीदने के लिए फा्रंस के साथ भारत सरकार ने 8.7 बिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर करने की घोषणा अप्रैल 2015 में की थी, एक साल बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, इस डील को मनमोहन सरकार के उस सौदे की जगह लाया गया था जिसके तहत 126 राफेल विमान खरीदे जाने थे, जिनमें से 108 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा बनाए जाने थे।
ईमानदार इमेज हो रही खराब
मीडियापार्ट के इस नये खूलासें पर अभी तक भाजपा नेताओं का कोई प्रतिक्रिया नही आयी है, लेकिन जिस तरह से मीडियापार्ट राफेल सौंदे की एक के बाद एक परतें प्याज की तरह खोल रहा है उससे मोदी सरकार की ईमानदार इमेज को नुक्सान पहुंच रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि देश मेंं मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर जरूर राफेल सौंदे को ठंडे बस्ते में डाल दिया लेकिन फ्रांस में जिस तरह से इस मामले की जड़े खोदी जा रही है उसने जरूर मोदी सरकार के परेशानियों को बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राफेल सौंदा कही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का बोफोर्स सौंदा ना बन जायें?