प्रतिबंधित प्लास्टिक के झंडे को नही रोक पाने वाले नक्सलवाद व आंतकवाद को कैसे रोक पायेगें
प्लास्टिक के झंडे का उपयोग पर रोक के लिए केंद्रिय गृहमंत्रालय के द्वारा सक्त निर्देश राज्य व केंद्रशासित राज्यों को जारी किया जाना स्पष्ट करता है कि मोदी सरकार में भी गृहमंत्रालय के निर्देशों का जमीनी स्तर पर पालन नही होने के कारण उन्हें बार बार सक्त निर्देश जारी करने को मजबूर होना पड़ा रहा है। ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ राज्य सहित देश के अधिकांश राज्यों में प्लास्टिक के कैरी बैग पर रोक लगाये जाने के बाद भी उनका उपयोग खूल्ले आम हो रहा है, कोरोना काल में प्रतिबंधित प्लास्टिक के कैरी बैगों को जनप्रतिनिधियों ने भी खूल कर उपयोग किया, उस वक्त किसी को प्रतिबंधित प्लास्टिक को चिंता दिखाई नही दी। सवाल यह है कि प्रतिबंधित प्लास्टिक पर सरकारें क्यो नही लगाम लगा पा रही है, क्या इस मामले पर भी नक्सलवादियों या आंतकवादियों की तरह ही विदेशी हाथ होने के कारण मोदी सरकार या राज्य सरकार रोक नही पा रही है।
पर्यावरण के नुक्सान को देखते हुए केंद्र व राज्य सरकारों ने प्लास्टिक के कैरी बैंग पर कई वर्षो पूर्व ही प्रतिबंध लगाने के साथ ही स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर भी प्लास्टिक के झंडे पर रोक लगाने के बाद भी यह पर्यावरण को बचाने के लिए प्लास्टिक पर लगाये गये प्रतिबंध अन्य सरकारी योजना की तरह ही कागजों में ही सिमटा हुआ है। जिसके चलते एक बार फिर केंद्रीय गृहमंत्रालय को आगामी 15 अगस्त के देखते हुए प्लास्टिक के झंडे के उपयोग नही करने के लिए सक्त निर्देश जारी करना पड़ा जो इस बात का प्रमाण है कि केंद्रीय निर्देशों का पालन नही हो रहा है और जमीनी स्तर पर प्रतिबंधित प्लास्टिक के झंडे का खरीदी बिक्री जारी है। केंद्र में मजबूत मोदी सरकार होने के बाद भी जब प्रतिबंधित प्लास्टिक के झंडे का उत्पादन और उसकी बिक्री को रोक पाने में असफल है तो फिर भ्रष्टाचार के साथ ही आतंकवाद व नक्सवाद का खात्मा किस तरह से कर पायेगी। प्रतिबंधित प्लास्टिक की तरह ही स्वच्छता अभियान की कागजों में ही सफलता पूर्वक संचालित हो रहा है।