सरकार नक्सलियों की मध्यस्थ नियुक्त करने वाली शर्त मानेंगी?
तुर्रेम नक्सली मुठभेड़ की क्लाईमेक्स शायद अभी बाकी है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योकि नक्सलियों ने जवान राकेश्वर सिंह मनहास को अगवा कर लिया है और उनकी रिहाई के लिए सरकार के सामने मध्यस्थ नियुक्त करने का दबाव बनाया है। जो इस बात का प्रमाण है कि नक्सली सरकार से बातचीत करना चाहते है? सरकार की तरफ से इस मामले पर क्या फैसला लिया जाता है इसका सभी को इंतजार है। सरकार पर अगवा जवान के रिहाई का दवाब समय गुजरने के साथ बढ़ता जायेगा।
बस्तर के लिए नासूर बन चुके नक्सली समस्या से निजाद पाने के लिए लम्बे समय से प्रयास किया जा रहे है लेकिन सफलता अभी तक नही मिल सकी है। नक्सली खात्मे का लक्ष्य कितना दूर है इसका भी कोई आंकलन किसी के पास नही है, वही दूसरी तरफ आये दिनों नक्सली हिंसा में लोगो की मौत का सिलसिला जारी है। मौत का यह तांडव बस्तर से खत्म होना चाहिए इसके लिए हर रणनीति पर विचार करना चाहिए जिसमें बातचीत का रणनीति भी शामिल हो, क्योकि हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान नही हो सकता है, लडा़ई मेें व्यक्ति मरता है ना की विचार धारा। इसलिए जरूरी है कि सरकार नक्सलियों से भी वार्तालाप करके इस समस्या का स्थाई समाधान के रास्ते तलाश करें। राजनीतिक जानकारों की मानें तो जब पाकिस्तान, चीन से बातचीत हो सकती है तो फिर नक्सलियों से बातचीत करने में क्या समस्या है, जबकि यह देश के ही नागरिक है। नक्सलियों ने पूर्व में भी सरकार से बातचीत की अपील की थी लेकिन सरकार ने उसे गंभीरता से नही लिया, जिसके बाद से लगातार नक्सली घटनाओं मेंं तेजी आयी है। नक्सलियों ने अगवा जवान की रिहाई के लिए मध्यस्थ नियुक्त करने की शर्त रख कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वह बातचीत करना चाहती है लेकिन सरकार इस मामले पर क्या निर्णय लेती है इसका सभी को इंतजार है। बस्तर में नक्सली हिंसा का दशकों पुराना इतिहास रहा है अगर किसी तरह से इसका समाधान हो जाये तो निश्चित ही बस्तर के लिए एक एतिहासिक उपलब्धि होगी।