लेखक श्रीराम शर्मा की जगह गायत्री परिवार के संस्थापक पंउित श्री राम शर्मा की फोटो छापी
देश बदलने के नारे के बीच योगी सरकार में यूपी बोर्ड की लेखक श्रीराम शर्मा की जन्मतिथि बदलने के साथ ही उनकी फोटो तक बदल दी है। नौवीं क्लास में प्रकाशित हिंदी किताब में मशहूर लेखक श्रीराम शर्मा की जगह गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की तस्वीर छपी हुई है। गनीमत है कि यह बदलाव सिर्फ एक पब्लिशर की किताब में हुआ है, इसलिए यूपी बोर्ड के अधिकारी पब्लिशर के कंधो पर इस बदलाव की पूरी जिम्मेदारी डाल कर अपना पल्ला जरूर झाड़ रहे है, सवाल यह है कि पब्लिशर अपने हिसाब से किताब में बदलाव करने में कैसे सफल हो गया, क्यां यूपी बोर्ड के अधिकारियों को इस बदलाव की भनक तक नोटबंदी की तरह नही लगी।
हिंसा करने वालें घर में दो दिन में जेसीबी चल जाती है, इस गलती का पता लगाने में तीन महीना लगा अधिकारियों को ?
योगी सरकार में अधिकारी शुक्रवार को हुई हिंसक प्रदर्शन के दोषियों का घर में जेसीबी रविवार को चला देते है, जो इस बात का जीता जागता सबूत है कि योगी सरकार में प्रशासनिक अलमा कितना चुस्त दुरस्थ है लेकिन दुनिया के सबसे बड़े एजुकेशनल बोर्ड कहे जाने वाले यूपी बोर्ड के अधिकारी प्रयागराज विकास प्राधिकरण की तरह सक्रिय नही होने से पब्लिशर के अपने हिसाब से नौवी की हिंदी किताब में बदलाव करके ना सिर्फ यूपी बोर्ड के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़ कर दिया, योगी सरकार की कार्यप्रणाली पर भी कही ना कही प्रश्र चिन्ह लगा दिया? पब्लिशर ने नौवीं क्लास के प्रकाशित हिंदी किताब में मशहूर लेखक श्री राम शर्मा की जगह गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की फोटो छाप दी, इसके अलावा जन्मतिथि में भी बदलाव कर दिया। यूपी बोर्ड के अधिकारियों को मोदी सरकार की नोटबंदी की तरह यह गलती का पता ही नही चला ,लेकिन जिस तरह से नोटबंदी के बाद देश की अर्थव्यवस्था लडख़ड़ाने लगी उसके बाद नोटबंदी को लेकर सवाल गहराने लगा जो अभी तक कायम है उसी तरह ही यह गलती उजागर होने के बाद यूपी बोर्ड के अधिकारी नेताओं की तरह मंहगाई के लिए दूसरे नेताओं को जिम्मेदार बता कर अपना पल्ला झाडऩे की कोशिश कर रहे है, कि यह यूपी बोर्ड की नही पब्लिशर की गलती है। लेखक श्रीराम शर्मा का जन्म स्थान मैनपूरी लिखा बताया गया है जबकि दो दशक पहले ही फिरोजाबाद जिले की शिकोहाबाद तहसील में शामिल हो चुकी है, जो बताता है कि यूपी सरकार में भी व्यवस्था पुरानी दौर की ही चल रही है, क्या भाजपा सिर्फ नारे के माध्यम से ही देश बदलाना चाहती है? इसके अलावा किताब में लेखक का जन्मतिथि 1892 लिखी है जबकि उनका जन्म 23 मार्च 1892 में हुआ था।
ऐसा माना जाता है कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में राजनीतिक फायदे के लिए झूठ फैलाया जाता है, अब यूपी बोर्ड भी व्हॉटएप यूनिवर्सिटी की तर्ज पर काम करते हुए छात्रों को गलत जानकारी उपलब्ध करा करके उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। सवाल यह है कि योगी सरकार इस गलती पर यूपी बोर्ड के अधिकारियों पर कोई कार्यवाही करेगी या सिर्फ पब्लिशर पर कार्यवाही करके मामले को रफादफा कर देगी?