आरोप प्रत्यारोप की राजनीति में बस्तर का हो रहा नुक्सान
मोदी सरकार जहां रेल में शोषण कर रही है तो राज्य सरकार ने खेल अकादमी में
राजनीतिक दल के नेता बस्तर हितों से ज्यादा अपनी पार्टी की हितों का ध्यान रखने के कारण ही बस्तर का शोषण का सिलसिला रूक नही रहा है। ताजा मामला बस्तर में रेल सुविधाओं को लेकर है जिसमें कांग्रेस मोदी सरकार को निशाना साध रहे है, वही आने वाले दिनों में बस्तर को खेल अकादमी नही मिलने पर भाजपा वाले कांग्रेसियों पर निशाना साधेगें, जबकि बस्तरवासियों को रेल सुविधा भी चाहिए और खेल अकादमी भी। राजनीतिक दल के नेता बस्तर हित के लिए पार्टी को नजरअंदाज करने का साहस नही जूटा पाने के कारण ही बस्तर का शोषण छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद भी जारी है, और अगर बस्तर की राजनीति में भविष्य में कोई बदलाव नही आया तो शोषण का यही सिलसिला जारी रहेगा। नगरनार निजीकरण में भी कुछ इसी तरह की राजनीति चल रही है, जबकि कांग्रेस व भाजपा दोनों ही चाह रहे है कि निजीकरण ना हो, लेकिन इसके बाद भी दोनों एक मंच पर आने का साहस नही जूटा पाये है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजनीति अपनी जगह है लेकिन जब बस्तर हित की बात हो उसमें राजनीतिक दलों के नेताओं की पहली प्राथमिकता बस्तर होनी चाहिए , उनकी लड़ाई में बस्तर का नुक्सान नही होना चाहिए। राजनीतिक दलों के आला नेता को बस्तर की इस राजनीति से पूरी जानकारी होने के कारण बस्तर के शोषण करने में भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को आसानी हो जाती है। बस्तर जिसे सत्ता का द्वार की संज्ञा मिली हुई है इसके बाद भी बस्तर का छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद भी शोषण का सिलसिला जारी होने इस बात का संकेत है कि कमजोर नेतागिरी के कारण बस्तर को मिलने वाला फायदा दूसरे क्षेत्रों को मिल जाता है। बस्तर प्राधिकारण का निर्माण बस्तर विकास के लिए किया गया था लेकिन इसके पैसों का उपयोग राज्य के दूसरे हिस्सों में किया जाने का सिलसिला जारी होना कमजोर नेतागिरी की निशानी है। बस्तर को उसका हक दिलाने के लिए जरूरी है कि पहले नेतागिरी का विकास हो, अन्यथा दूसरे क्षेत्रों से बचा हुआ ही बस्तर विकास के नाम पर मिलेगा।