नक्सली घटना में पांच लोगों की मौत होती तो हाईलेवर कमेटी की बैठक होती, सडक़ हादसों में पांच लोगों की मौत पर शोक संदेश के अलावा कुछ नही किया गया
बस्तर में विकास की गाथा लिखने का दावा तो नेता हमेशा उदृघाटन कार्यक्रमों में करते है लेकिन सडक़ हादसों पर लगाम लगाने का विकास की श्रेणी में नही रखने के कारण सडक़ हादसों को कम करने की कोई ठोस रणनीति नही बनाये जाने के कारण सडक़ हादसों में नक्सली घटनाओं से ज्यादा मौते हर साल होती है।
कांकेर जिले में मॉर्निग वॉक के दौरान ट्रक वालें ने चार बच्चों को रौद दिया, चारों की घटना स्थल पर ही मौत हो गयी वही बस के बैक करने के दौरान कंडक्टर की भी बस के चपेट में आने से मौत हो गयी। इसके बाद भी यह मामले नक्सली घटना की तरह राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय नही बन पाया। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर पांच लोग नक्सली घटना में मारे जाते तो राज्य ही नही देश में सुर्खियां बटोरती, जिसके लिए हाई लेवर बैठकों का दौर चलता लेकिन यह सडक़ हादसा एक आम हादसा बन कर रह गया। सरकार में मुआवजा देकर मामले का रफा रफा कर दिया, सवाल यह है कि सडक़ हादसों पर लगाम लगाने के लिए सरकारों के द्वारा, नक्सली समस्या की तरह रणनीति क्यो नही बनायी जाती है, ताकि सडक़ हादसों मेें होने वाली मौतों पर लगाम लगाया जा सके, राजनेता सडक़ हादसों को कम करने को कब विकास की श्रेणी में रखेगें। जानकारों की माने तो यातायात नियमों की अवहेलना के चलते ही अधिकांश सडक़ हादसे होते है इसके बाद भी सरकारें यातायात नियमों के पालन के प्रति ठोस रणनीति नही बनती है। सरकार नक्सलियों के बस्तर के कुछ क्षेत्रों में सिमटने का दावा करते है लेकिन सडक़ हादसों को कम करने के लिए कोई योजना नही बनती है जिसकी वजह से बेशकिमती जान सडक़ हादसों में चली जाती है।