बंगाल राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी के बीच शह और मात का खेल जारी है, दोनों की चालों पर है देशवासियों की नजर
ऐसा 70 सालों में नही हुआ कि देश के प्रधानमंत्री को, मुख्यमंत्री के लिए आधा घंटा इंतजार करना पड़ा हो, और जब मुख्यमंत्री आयी तो बैठक का हिस्सा बनने की जगह कागज थमा कर चली गयी हो। मोदी सरकार में यह असंभव कार्य संभव होने के साथ ही इतिहास के पन्नों पर भी हमेशा के लिए अमर भी हो गया है। कौन सही है या कौन गलत इसकी समीक्षा होती रहेगी, लेकिन यह घटना अपने आप में एतिहासिक है जो युगो युगों तक याद रखी जायेगी।
मोदी सरकार का नारा है कि जो 70 सालों में नही हुआ है वह सब मोदी सरकार में हो रहा है। बंगाल में जो कल हुआ वह भी विगत 70 सालों में कभी नही हुआ था। बंगाल के यास तूफान को लेकर पश्चिमी मेदिनीपुर जिले के कलईकुंडा में समीक्षा बैठक आयोजित की गयी थी, उल्लेखनीय है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी इसी परिसर में मौजूद होने के बाद भी आधा घंटा लेट बैठक में पहुंची। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लम्बा इंतजार करने के बाद भी बैठक का हिस्सा बनने की जगह अपनी रिपोर्ट पीएम को सौंप कर दूसरी मीटिंग में चली गयी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि स्वतंत्र भारत में इस तरह की यह पहली घटना है, मोदी सरकार हमेशा कुछ नया करने पर विश्वास रखती है, इसी तारतम्य में तूफान प्रभावित इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल में भाजपा के प्रतिपक्ष नेता शुभेंद्रु अधिकारी को भी इस बैठक में बुला लिया, लेकिन प्रधानमंत्री का यह फैसला मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी को पसंद नही आया और उन्होंने ने भी एक नयी परंपरा की नींव रखते हुए इस बैठक का बहिष्कार करने का फैसला लिया। इस मामले पर आने वाले समय पर राजनीति जम कर होगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा टीएमसी छोड़ कर भाजपा में गये शुभेंद्रु अधिकारी को इस बैठक में बुलाया जाना सही था या फिर ममता बेनर्जी के द्वारा बैठका का बहिष्कार करना सही था। लेकिन यह सच्चाई है कि दोनों ने ही एक नयी परंपरा की स्थापना कर दी है, जो निश्चित ही राजनीति को और दिलचस्प बनायेगी।