टै्रक्टर वालों से नक्सली पैसा वसूल रहे है तो सरकारी योजनाओं को कैसे छोड़ रहे होगें?
दंतेवाड़ा पुलिस ने पोरदेम मुठभेड़ में मारे गये नक्सली संतोष मरकाम के पास मिली चिट्ठी के आधार पर बताया है कि बस्तर संभाग के अंदरूनी क्षेत्रों में नक्सलियों टै्रैक्टर मालिको से सालाना 10 हजार रूपये की वसूली करते है, साथ ही उन्होंने बताया कि जो नक्सलियों को पैसा नही देता है उन्हें जन अदालत लगा कर सजा दी जाती है। यह घटना उजागर करती है कि नक्सली अपना संगठन चलाने के लिए टै्रैक्टर मालिकों से वसूली कर रहे है। ऐसे में सवाल उठता है कि नक्सली कही बस्तर में विकास के नाम पर चलायी जा रही सरकारी योजनाओं में काम करने वाले ठेकेदारों व अधिकारियों से भी पैसा तो नही वसूलते होगें, क्योकि सरकारी काम करने वाले पैसा नही देगें तो उन्हें भी जन अदालत लगा कर नक्सली सजा दे सकते है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नक्सलियों केा टै्रक्टर मालिकों से कई गुना ज्यादा पैसा सरकारी योजनाओं पर काम करने वाले ठेकेदारों व अधिकारियों से मिल सकता है इसलिए उनके द्वारा टैक्टर मालिकों की तरह ही सरकारी योजना पर भी वसूली का फोकस होगा। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में स्थित अचानकमार टाइगर रिजर्व के घनों जंगल नक्सलियों का ठिकाना बनने की वजह से इसे जिले को नक्सल प्रभावित जिला घोषित किया गया है बस्तर संभाग का अधिकांश क्षेत्रों में जंगल होने के साथ ही बीजापुर में भी इन्द्रावती टाइगर रिजर्व पर वन विभाग प्रतिवर्ष करोड़ो रूपये खर्च कर रही है, क्या नक्सली यहां पर काम करने वालें लोगों से पैस नही वसूलते होगें? इसके अलावा भी बस्तर में अनेकों विकास की योजनाओं पर काम चल रहा है। जब वह टै्रक्टर वालों से पैसा वसूलने में गुरेज नही कर रहे है तो सरकारी योजनाओं का काम करने वालों को कैसे छोड़ सकते है। सरकार व पुलिस प्रशासन जब तक नक्सलियों के आमदनी के रूट पर लगाम नही लगा पायेगी इस संगठन की कमर नही टूट सकती है, क्योकि किसी भी संगठन को चलाने के लिए पैसों को जरूरत होती है। लेकिन इस दिशा में अभी तक सरकार के द्वारा कोई रणनीति नही बनायी गयी है, पूर्व में कुछ प्रयास किये गये थे वह भी ठंडे बस्ते में डाल दिये गये है।