मध्यस्थों को जनअदालत में सांैपा अगवा जवान
तर्रेम नक्सली घटना में नक्सलियों के द्वारा अगवा किये गये जवान रामेश्वर सिंह को नक्सलियों ने जन अदालत लगा कर सरकार के द्वारा नियुक्त मध्यस्थों को सौप जाने के बाद से इस घटना का पटाक्षेप हो गया है, लेकिन क्या आने वाले समय में सरकार व नक्सलियों के बीच बातचीत को लेकर कोई प्रक्रिया आगे बढ़ती है, यह ऐसा सवाल है जो चर्चा का विषय बना रहेगा।
तर्रेम में हुई नक्सली घटना में जहंा 22 जवान ने अपनी शहादत दी वही बड़ी संख्या में जवान घायल भी हुए, इस घटना में नक्सलियों ने बड़ी संख्या में हथियार लूटने के साथ ही जवान रामेश्वर सिंह को भी अगवा कर लिया। नक्सलियों द्वारा जवान के अगवा किये जाने की सूचना के बाद उनकी रिहाई के प्रयास तेज हो गये, नक्सलियों ने रिहाई के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति की शर्त रखी, सरकार की तरफ से इस मामले पर पद्म श्री धरमपाल सैनी, गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बौरेय्या, रिटायर्ड शिक्षक जयरूद्र करे और मुरतुंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका को मध्यस्थ बनाया गया। वार्ताकारों के साथ पत्रकार घने जंगल पहुंचे, जहां 20 गांव के हजारों लोगों को इकट्ठा कर नक्सलियों ने जन अदालत लगाई गयी थी। जवान को रिहा करने से पूर्व जन अदालत में उपस्थित ग्रामीणों से पूछा गया कि क्या उन्हें छोड़ दिया चाहिए, लोगों ने जब हामी भरी तब उनकी रस्सियां खोली गई। रिहाई के बाद जवान राकेश्वर सिंह ने बताया कि वह हमले के दौरान बेहोश हो गये थे, तब उन्हें नक्सली उठा कर ले गये, 6 दिनों तक अलग-अलग गांव में घुमाया। उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने उनके साथ बुरा सलूक नही किया, खाने -पीने और सोने की उचित व्यवस्था भी की थी। जवान की रिहाई के बाद कई दिनों से चले आ रहे मामले का पटाक्षेप तो हो गया है लेकिन क्या मध्यस्थों के माध्यम से अगवा जवान की रिहाई के बाद यह सवाल तो चर्चा का विषय बन गया है कि क्या सरकार और नक्सलियों के बीच आने वाले दिनों में क्या बातचीत होगी? क्योकि पूर्व में नक्सलियों ने बातचीत की पेशकश की थी जिसे सरकार द्वारा गंभीरता से नही लेने के बाद से बस्तर में नक्सली घटनाओं में तेजी आयी, नारायणपुर में जवानों की भरी बस को बारूद से उड़ाया जिसमें पांच जवान शहीद हुई, इसके बाद कोंडागांव में वाहनो में आग लगायी और इसी कड़ी में तर्रेम नक्सली घटना भी घटी।
सरकार नक्सलियों की शर्त मांगेगी?