सरकार ने आयोग का कार्यकाल बढ़ाने के साथ जांच में तीन नये बिन्दू जोडे
झीरमकांड की आठ सालों पर किसी तरह से न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट तैयार हुई लेकिन इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पहले ही राजनीतिक विवाद में फंस गयी है। न्यायिक जांच आयोग द्वारा रिपोर्ट राज्य सरकार को ना सौंप कर राज्यपाल को सौंपने के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो गयी जिसके बाद से राजनीतिक जानकारों का अनुमान था कि भाजपा कांग्रेस के इस लड़ाई में जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नही हो पायेगी। रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के पूर्व ही राज्य सरकार ने झीरम हमले की जांच के लिए दो नए जस्टिस की नियुक्ति करने के साथ ही जस्टिस सतीश के अग्रिहोत्री को झीरम घाटी न्यायिक जांच आयोग का अध्यक्ष बनाया है। जांच में तीन नये बिन्दू जोडऩे के साथ ही आयोग को 6 महीने में अपनी रिपोर्ट सौपेंगी। आयोग का कार्यकाल 6 महीने फिर से बढ़ा दिये जाने से झीरम जांच रिपोर्ट की सार्वजनिक होने की उम्मीद खत्म हो गयी है, वही 6 महीने में नया जांच आयोग अपनी जांच पूरा कर लेगा यह सवाल भी आम जनता के बीच चर्चा का विषय बन गया है?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सिलगेर मामले की जांच रिपोर्ट अभी तक पूरी नही कर पायी है तो 6 महीने में किस तरह से झीरम घटना के नये बिन्दुओं की जांच पूरी हो पायेगी। जांच आयोग का कार्यकाल बढ़ा कर भाजपा व कांग्रेस सिर्फ झीरम मुद्दे पर राजनीति ही करते रहेगें। जैसे देश व राज्य के अन्य मुद्दे पर राजनीति हो होती है लेकिन परिणाम कुछ नही निकलता है।