प्रदेश सरकार गांधी परिवार चला रहा है और भाजपा संगठन दिल्ली दरबार
प्रतिपक्ष नेता धरमलाल कौशिक को क्यों हटाया गया और उनकी जगह प्रतिपक्ष नेता नारायण चंदेल को क्यों बनाया गया, इसका जवाब किसी भी भाजपा नेता के पास नही है, क्योकि प्रतिपक्ष नेता को बदलने की कार्यवाही सीधे दिल्ली से होने के कारण उस पर सवाल उठाने का साहस जब धरमलाल कौशिक में नही है तो पार्टी के अन्य नेता यह साहस दिखाने का हिम्मत कैसे करेगें? प्रतिपक्ष नेता की दौड़ में भाजपा के वरीष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल व अजय चंद्राकर भी शामिल थे, लेकिन पार्टी के उन्हें क्यों दरकिनार कर दिया। सभी ने सर्वसम्मति से दिल्ली दरबार का फैसला कबूल कर दिया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपाई गांधी परिवार पर निशाना साधते हैं कि प्रदेश सरकार गंाधी परिवार के इशारे पर चल रही है, ठीक उसी तरह ही भाजपा भी दिल्ली दरबार के इशारे पर चल रही है।
दो बड़े बदलाव के बाद भी विरोध के स्वर नही उठे, यही ही भाजपा की असली ताकत
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने पहले प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदेव साय को हटा कर भाजपा सांसद अरूण साव को जिम्मेदारी दी लेकिन किसी भी भाजपा के आदिवासी नेता ने यह सवाल नही उठाया कि आदिवासी की जगह पिछड़े को संगठन की कमान क्यों सौपी गई जबकि प्रतिपक्ष नेता भी पिछड़े वर्ग से आते है। कुछ दिनों बाद प्रतिपक्ष नेता धरमलाल कौशिक को हटा कर पिछड़ा वर्ग से आने वाले नारायण चंदेल को कमान सौंप दी, जिस पर भी किसी ने सवाल नही उठाया कि किन कारणों के चलते धरमलाल कौशिक को हटाया गया। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नारायण चंदेल का नाम दिल्ली दरबार ने तय किया था सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए रायपुर पार्टी मुख्यालय में विधायक दलों की बैठक आहुत करके विधायक दल के नेता चुने जाने की रस्म अदायगी की गई। मामला राजनीतिक तूल ना पकड़े इसलिए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जिस तरह से एकनाथ शिंदे का नाम मुख्यमंत्री केे लिए आगे बढ़ाया था उसी तरह ही प्रतिपक्ष नेता धरमलाल कौशिक ने नारायल चंदेल के नाम का प्रस्ताव रखा।
भाजपा के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पहले प्रदेशाध्यक्ष को बदला इसके बाद प्रतिपक्ष नेता को भी बदला, लेकिन पार्टी के अंदर किसी भी तरह की बगावत के स्वर नही बुलंद हुई, और ना ही राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को लेकर जो आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ में उत्साहित नजर आ रहा था उसके किसी भी नेता ने आदिवासी प्रदेशाध्यक्ष को हटाने के बाद भी प्रतिपक्ष नेता आदिवासी को नही बनाये जाने पर दिल्ली दरबार के फैसले पर सवाल नही उठाया।