प्रतिबंधित पटाखे खरीदे जा चुके है तो निश्चित ही उने फोड़ा भी जायेगा?
प्रतिबंधित प्लास्टिक की तरह ही पटाखों की गाइडलाइन भी सिर्फ कागजों में ही सफलता के झंडे गाड़ सकती है।
पटाखों को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश का जमीनी स्तर पर पालन क्या कलेक्टर व एसपी करा पायेगें, या इसकी भी हालत प्रतिबंधित प्लास्टिंग बैंग की तरह सिर्फ कागजेां में ही सीमित रहेगी?
केंद्र सरकार ने जहां कोरोना की गाईडलाइन का विस्तार 30 नवंबर तक बढ़ा दिया है वही दूसरी तरफ वायु व ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नई दिल्ली और दिल्ली हाईकोर्ट ेआदेश का हवाला देकर राज्य सरकार ने भी गाइडलाइन जारी की है जिसमें दीपावली में आठ से दस बजे तक पटाखा फोडने की अनुमति दी गयी है। इस गाइडलाइन को पालन कराने की जिम्मेदारी जिले के कलेक्टर व एसपी को कंधो पर है, सवाल यह है कि कम प्रदूषण पैदा करने वाले इम्पू्रव्ड व ग्रीन पटाखे की बिक्री ही बाजार में हो, इसके लिए जिला प्रशासन के द्वारा क्या व्यवस्था की गयी है इसका खूलासा नही हो सका है, क्योकि अगर बाजार में प्रतिबंधित पटाखे जैसे सीरीज पटाखे, लडियों की
बिक्री हुई तो उन्हें फोडा भी जायेगा, ठीक प्रतिबंधित प्लास्टिक की तरह। क्योकि प्रशासन प्रतिबंधित प्लास्टिक का थोक कारोबार करने वालों पर रोक लगा कर प्रतिबङ्क्षधत प्लास्टिक पर लगाम लगा सकती है लेकिन छोटे व्यापारियों पर कार्यवाही करके प्रतिबंधित प्लास्टिक को रोकने की कोशिश वर्षो से की जा रही है लेकिन इसके बाद भी इसका उपयोग जारी है। उसी तरह ही पटाखों के मामले पर भी हुआ तो गाइडलाइन की कोई उपयोगिता नही रह जायेगी।
पालन कराना होगा मुश्किल
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सरकार ने पटाखोंं के लिए गाइडलाइन जारी करने में देरी कर दी, क्योकि व्यापारियों द्वारा प्रतिबंधित पटाखों की भी खरीदी कर ली गयी होगी और उसे खूले तौर पर ना बेचा जाये तो पिछले दरवाजें से जरूर बेचा जायेगा और लोग उसे निर्धारित समय में या उसके बाद भी फोड़ेगें। जिस उद्देश्य से दीपावली को लेकर गाइडलाइन बनायी गयी है वह धरातल पर प्रतिबंधित प्लास्टिक की तरह ही असफल साबित होगी।