May 1, 2025

धर्म पर बोलने का अधिकार सिर्फ धर्मगुरूओं को होना चाहिए राजनेताओं को नही

धर्म की राजनीति से धर्म का विकास हो रहा है या नुक्सान, समीक्षा करने की है जरूरत

जगतगुरू शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि धर्मग्रथ पर बोलने का अधिकार सिर्फ धर्माचार्य को होना चाहिए, संभवत: इसी तरह ही धर्म पर बोलने का अधिकार भी धर्माचार्य और धर्मगुरू के पास ही होना चहिए, लेकिन देश में धर्म की राजनीति यहां तक पहुंच गई है कि राममंदिर के उद्घाटन की तारीख देश के गृहमंत्री अमित शाह बता रहे है, और धर्माचार्य और धर्मगुरूओं के द्वारा इसका विरोध नही किया गया कि धर्म के मामले पर राजनीतिक दल के नेता कैसे फैसला ले सकते है। राजनीति में धर्म के शामिल होने के कारण रामचरित्र मानस को लेकर विवादित टिप्पणी की जा रही है ताकि हिन्दुओं के वोटों में सेंधमारी की जा सकी, जो भाजपा के साथ खड़ा है।
धर्म को राजनीति में शामिल करने से राजनीतिक दलों का तो फायदा हेाता है लेकिन धर्म का नुक्सान होता है? इसका जीताजागता उदाहरण रामचरित्र मानस को लेकर की गई विवादित टिप्पणी है, ताकि भाजपा के हिन्दू वोटों में सेंधमारी की जा सकें, हिन्दुत्व की राजनीति करने के कारण भाजपा बेहद मजबूत हो गई है, विपक्ष को सत्ता तक पहुंचने के लिए जरूरी हो गया है कि वह भाजपा के हिन्दुत्व की राजनीति पर किसी भी तरह से सेंधमारी करे। जगतगुरू शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का रामचरित्र मानस विवाद पर कहना है कि हिन्दू समुदाय को दो भागों में बांटने की कोशिश हो रही है, जिसके चलते धर्मग्रथों पर सियासत हो रही है। राजनीतिक जानकारोंं का कहना है कि जगतगुरू शंकराचार्य अविमुक्तेश्वेरानंद की बात पूरी तरह से सही है कि राजनीतिक लाभ के लिए हिन्दुओं को बांटा जा रहा है, क्योकि विपक्ष के पास भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए इसके अलावा कोई और रास्ता नही है, जब राजनीतिक दल धर्म को आधार बना कर वोट बैंक की राजनीति करेंगे तो विपक्ष को भी इस राजनीति का तोड़ के लिए धर्मग्रथों का ही सहारा लेना पड़ेगा, रामचरित्र मानस पर टिप्पणी करना इसी तरह का प्रयास है, यह कोशिश सफल होती है या नही यह तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा लेकिन धर्म पर राजनीति करने से धर्म को ही नुक्सान होता है, क्योकि विपक्ष वोट बैंक के चलते अलग राह अपना लेता है, इस पर लगाम नही लगाई गई तो इसका विस्तार ही होगा। धर्माचार्य और धर्मगुरूओं को इस बारे में मंथन करना चाहिए कि धर्म के नाम पर राजनीतिक दल राजनीति बिलकुल भी नही करें, क्योकि वह सत्ता तक तो जरूर पहुंच जाते है लेकिन इस राजनीति से धर्म केा जो नुक्सान होता है उसकी भरपाई मुश्किल है।

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