कोरोना के नियम तोडऩे पर 1.75 लाख का जुर्माना, भारत में नियम तोडऩे वालों पर अभी तक क्या हुई कार्यवाही?
कांग्रेस और भाजपा के आरोप – प्रत्यारोप में ही कोरोना के मापदंड की भी भेंट चढ़ रही है
देश कोरोना संक्रमण की रफ्तार दुनिया में सबसे तेज होने के बाद भी देश के नेता अपने ही बनाये गये नियमों को तोड़ कर इन दिनों विधानसभा चुनाव के प्रचार से व्यस्त होने से यह सवाल गहराने लगा है कि एक तरफ जनता को घरों में कैंद करने के लिए लॉकडाउन लगाया जा रहा है वही दूसरी तरफ नेता बगैर मास्क के लिए रोड़ शौ व आम सभा करके क्या कोरेाना संक्रमण को रोकने का प्रयास कर रहे है? जब बनाने वाले ही नियमों का पालन नही करेगें तो जनता कैसे करेगी जिसकी वजह देश में कोरोना संक्रमण सुनामी का रूप लेता जा रहा है। वही नार्वे के प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग पर कोरोना नियमों को तोडऩे पर पुलिस ने 1.75 लाख रूपए का जुर्माना लगाया है। उन्होनें परिवार के 13 सदस्यों के साथ जन्मदिन मनाया जबकि देश में 10 से ज्यादा लोगों के कार्यक्रम में शामिल होने पर रोक लगी हुई है।
कोरोना के बनाये गये नियम देश के सभी लोगों पर लागू होते हेै लेकिन देश में अप्रत्यक्ष रूप से नेताओं को भगवान का दर्जा मिला हुआ है इसलिए वह कोरोना के बनाये गये नियमों की भी धज्जियां उड़ाने में पीछे नही है। एक तरफ जनता को घरोंं में कैेद करने के लिए लॉकडाउन लगाया जा रहा है वही दूसरी तरफ नेता बगैर मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग के चुनाव प्रचार कर रहे है। जबकि चुनाव आयोग ने कोरेाना को देखते हुए रैली व सभाओं के लिए गाईडलाईन भी तैयार की है लेकिन चुनाव आयोग के पास इतना साहस नही हेै कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह पर किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही कर सके। जबकि नार्वे के प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग ने परिवार के 13 सदस्यों के साथ जन्म दिन मनाने पर पुलिस ने 1.75 लाख का जुर्माना लगाया है। क्या मोदी के रामराज्य में पुलिस नेताओं पर इस तरह की कार्यवाही करने का साहस कर पायेगी जैसे नार्वे की पुलिस द्वारा किया गया है। क्योकि कोरेाना की लड़ाई भी एकरूपता के साथ नही लड़ी गयी तो किस तरह से कोरोना के खिलाफ जंग जीती जा सकती है? गृहमंत्री अमित शाह ने कोरोना काल में चुनाव आयोजित करने के संबंध में कहा कि राजनीतिग प्रचार की बात है तो यह चुनाव आयोग को तय करना है कि चुनाव कब कराने है और कब नहीं। यह सियासी दल नहीं तय कर सकते है। मैं मानता हूं कि संविधान में और कोई अंतरिम व्यवस्था नहीं है इसलिए चुनाव कराना पसंद किया होगा। सवाल यह है कि राजनीतिक दलों के नेताओं ने रेैली व संभाओं में चुनाव आयोग के मापदंडों का पालन किया या नही? अगर नही किया तो क्या चुनाव आयोग नार्वे के प्रधानमंत्री की तरह किसी को देाषी करार देते हुए उस पर जुर्माना या कोई और कार्यावाही करने का साहस करेगा, अगर चुनाव आयेाग निष्पक्षता के साथ काम करता है उस पर कोई राजनीतिक दबाव नही है तो?