बसपा और भाजपा गठबंधन की रणनीति नही बनायी सपा ने
चिडिय़ा के खेत चुग जाने केबाद जिस तरह तैयारी का कोई जिस तरह कोई मतलब नही है उसी तरह ही यूपी विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन को मिली करारी हार के बाद यह आरोप लगना कि भाजपा और बसपा ने आपस में मिलीभगत करने चुनाव लड़े हेै कोई मतलब नही है, क्योकि जिला पंचायत के अध्यक्ष पद के चुनाव में बसपा भाजपा के साथ खड़ी थी इसके अलावा भी कई मौके पर बसपा भाजपा एक साथ नजर आयी, इसके बाद भी विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन ने बसपा और भाजपा के इस अदृश्य गठबंधन के लिए कोई रणनीति नही बनायी तो यह सपा के रणनीतिकारों की चुक है। ना कि भाजपा की।
यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा का सफाया और भाजपा की जीत को लेकर सपा के अंदर खलबली मचा दी है। सपा गठबंधन का हिस्सा रहे ओम प्रकाश राजभर ने बीजेपी और बसपा पर मिलीभगत का आरोप लगते हुए कहा कि कई सीटों पर दोनों ने आपसी सहमति से उम्मीदवार खड़े किए थे। उन्होंने कहा कि पूर्वाचल की 122 सीटें ऐसी थी जहां पर उम्मीदवार बीजेपी की दफ्तर से तय हुए और चुनाव चिन्ह बसपा के दफ्तर से दिये गये। सवाल यह है कि सपा के रणनीतिकारों ने विधानसभा चुनाव के पूर्व इस बात का मंथन क्यो नही किया कि बसपा जो भाजपा के साथ कई मामले पर खड़ी है, क्या वह सपा को हराने के लिए भाजपा के साथ अदृश्य समझौता तो नही लेगी, क्योकि बसपा प्रमुख मायावती भाजपा से ज्यादा सपा पर ही निशाना साधती रही है जो कही ना कही यह संकेत दे रहा है कि वह भी चाहती है कि योगी सरकार की वापसी उन्हें मंजूर है लेकिन सपा की सत्ता वापसी बिलकुल भी नही चाहती है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद यह तो तय हो चुका है कि भाजपा को एक मजबूत रणनीति के तहत ही हराया जा सकता है, जैसा बंगाल में ममता बेनर्जी ने किया, जहां पर मोदी सरकार की हर चाल गलत साबित हुई। यूपी विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी महंगाइ्र्र के साथ ही कोरोना में पलायन, व गंगा में तैयारी लाशों के साथ ही किसान आंदोलन व लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचलने को भी विपक्ष चुनावी फायदा नही उठा पाना यही संकेत दे रहा है कि सपा गठबंधन भाजपा को अपनी पिच में खिलाने की जगह भाजपा की पिच पर ही खेलती रही। जिसके चलते ग्रामीण जनता की नाराजगी झेलने के बाद भी योगी सरकार भारी बहुमत से चुनाव जीता।