अन्नाद्रमुक व भाजपा गठबंधन पर सवाल उठने लगे है
तमिलनाडु में भाजपा की सहयोगी अन्नाद्रमुक ने सीएए का विरोध करने फैसला लेने के दो दिन गुजर जाने के बाद भी भाजपा ने तमिलनाडु में अभी तक गठबंधन से अलग नही हुई है, ऐसे में राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनता जा रहा है कि भाजपा कही सीएए पर पीछे तो नही हट रही है, क्योकि असम व बंगाल चुनाव में भी भाजपा के नेता सीएए के मामले पर बोलने से बच रहे है। वही दूसरी तरफ तमिलनाडु में तो भाजपा उस गठबंधन का हिस्सा बनी हुई है जिसका प्रमुख दल अन्नाद्रमुक सीएए का विरोध करने की बात कह रहा है। बंगाल व असम जहां पहले ही भाजपा की मुश्किलें बढ़ी हुई है सीएए विरोधी के साथ मिल कर चुनाव लडऩे से हालात और भी खराब हो सकते है।
सीएए भाजपा का कोर मुद्दा है इसी के माध्यम से राजनीति का ध्रुवीकरण किया जा रहा था, लेकिन पंाच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा इस मुद्दे का ठंडे बस्तें में डालती दिखाई दे रही है। असम व बंगाल में भाजपा के स्टार प्रचारक हिन्दुत्व की राजनीति तो कर रहे है लेकिन सीएए पर बोलने से बच रहे है, वही तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक ने अन्तिम समय में सीएए का विरोध करके भाजपा की परेशानियों को बढ़ा ही दिया, जिसकी वजह से अब यह सवाल उठने लगा कि भाजपा इस गठबंधन को छोड़ देगी? लेकिन दो दिन का वक्त गुजर जाने के बाद भी भाजपा गठबंधन का हिस्सा बनी हुई है जो साबित करती है कि वह सीएए के विरोधियों के साथ भी भाजपा सत्ता पर काबिज होना चाहती है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तमिलनाडु में भाजपा का सीएए विरोधी अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन का खामियाजा बंगाल व असम चुनाव में हो सकता है, भाजपा जरूर सीएए पर कुछ नही बोल रही हेै लेकिन विरोध भी नही कर रही है, लेकिन तमिलनाडु में सीएए के विरोधी के साथ मिलकर चुनाव लडऩा साबित करता है कि सीएए को लेकर कम से कम विधानसभा चुनाव में पेट्रोल डीजल की तरह दामों को स्थिर रखने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि किसी तरह सत्ता तक पहुंचा दे।