सरकार ने जवान रिहाई तक पूरी मामले को गोपनीय बनाये रखा
अगवा जवान राकेश्वर सिंह की रिहाई की पटकथा नक्सलियों के पत्र आने के बाद ही तैयार होने लगी थी, सरकार ने बुधवार को नक्सलियो के शर्त के अनुसार मध्यस्थ भी नियुक्त कर दिया था, लेकिन इस बात की जानकारी सार्वजनिक नही किये जाने से संस्पेंस बरकरार था। गुरूवार शाम को जब जवान रिहा हुआ तो इसके बाद स्पष्ट हो गया कि सरकार ने जवान की रिहाई की जमीनी तैयार एक दिन पूर्व ही पूरी कर ली थी, परंतु रणनीति का खूलासा जवान की रिहाई के बाद ही सार्वजनिक करना चाहती थी।
तर्रेम नक्सली घटना में कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने अगवा कर लिया, नक्सलियों ने उसके जिंदा होने के बात सार्वजनिक करने के साथ ही उसकी रिहाई के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति का प्रस्ताव भी रखा नक्सलियों का पत्र आने के बाद से सरकार जवान की सकुशल रिहाई के लिए प्रयास में जुट गयी। सरकार ने पद्म श्री धरमपाल सैनी, गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बौरेैय्या, सेवानिवृत शिक्षक जयरूद्र करे और मुरतुंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका मध्यस्थ की नियुक्ति कर दिया है ,लेकिन उसे सार्वजनिक नही करने से यह सस्पेंस बरकरार था कि जवान की रिहाई कब होगी। गुरूवार शाम को जब अचानक जवान के रिहाई की खबर आई तो यह स्पष्ट हो गया कि सरकार जवान की रिहाई के पहले अपनी रणनीति को सार्वजनिक नही करना चाहती थी। जानकारों के अनुसार नक्सलियों ने जन अदालत लगा कर जवान को रिहा किया जो साबित करता है कि जवान की रिहाई की पूरी तैयारी लगभग बुधवार को पूरी कर ली गयी थी, क्योकि नक्सलियों को जन अदालत लगाने के लिए ग्रामीणों की जानकारी भी तो देनी थी, 20 हजार ग्रामीण पूर्व सूचना के जमा नही हो सकते है। बुधवार को शाम तक दोनों तरफ से स्थिति साफ हो गयी थी, जिसके चलते गुरूवार को निर्धारित जगह पर नक्सलियों की जन अदालत लगायी गयी और उसी जगह पर मध्यस्थ की टीम भी पहुची, ग्रामीणों द्वारा जवान की रिहाई पर सहमति जाहिर करने के बाद जवान को रिहा कर दिया गया। सरकार ने बगैर हो हल्ला किये जवान की शांति पूर्वक रिहाई कराने पर अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन सवाल अभी भी बना हुआ है कि मध्यस्थ और नक्सलियों के बीच क्या बातचीत हुई, क्या सरकार को बातचीत के टैबल में लाने के लिए नक्सलियों ने मध्यस्थ नियुक्ति की शर्त रखी थी? क्योकि पूर्व में भी नक्सलियों ने सरकार से बातचीत का पैगाम भेज चुकी थी, लेकिन सरकार द्वारा गंभीरता नही दिखाने के बाद से ही नक्सली घटनाओं मेंं तेजी आयी जिसके तहत ही तर्रेम नक्सली वारदात भी घटी।