किसानों की मौत पर दिल्ली क्यो चुप है
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक किसान मुद्दे पर मोदी सरकार के लिए सरदर्द बने हुए है इसके बाद भी मोदी सरकार उन्हें क्यों हटा नही रही है, यह ऐसा सवाल है जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनता जा रहा है। सत्यपाल मलिक के बगावती तेवर आगामी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए परेशानी का सबब भी बन सकते है। भाजपा उत्तरप्रदेश का चुनाव हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा बनाकर किसान आंदोलन को ठंडे बस्ते में डालने की रणनीति पर काम कर रही है। जिसके चलते ही बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में किसानों से ज्यादा कोरोना महामारी पर भाजपा नेताओं ने फोकस किया।
उपचुनाव हार के बाद भी भाजपा किसान आंदोलन पर गंभीर नही
राजनीतिक जानकारों का मानना है देश में हुए उपचुनाव में भाजपा के आशा के अनुरूप सफलता नही मिलने के बाद भी किसान आंदोलन को भाजपा गंभीरता से नही लेना स्पष्ट करता है कि कृषि बिल को लेकर भाजपा पूरी तरह से एकजूट है,जबकि उत्तरप्रदेश में पीलीभीत के भाजपा संासद वरूण गांधी भी किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे है, वही मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का कहना है कि किसान आंदोलन में 600 सौ ज्यादा किसानों की मौत हो जाने के बाद भी दिल्ली सरकार की तरफ से कुछ नही बोला गया लेकिन महाराष्ट के अस्पताल में 5-7 लोगों की मौत पर दिल्ली से शोक संदेश गए है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा नेताओं ने किसान आंदोलन को गंभीरता से नही लेना स्पष्ट करता है कि लगभग एक साल से चल रहा किसान आंदोलन भाजपा के हिन्दू मुशि£म एजेंडें की हवा नही निकाल पाया है। इसलिए कृषि बिल के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों की जिम्मेदारी बनती है कि वह उत्तरप्रदेश में भाजपा के धु्रवीकरण की राजनीति की हवा निकालने की कोशिश करें, क्योकि बंगाल की हार के बाद भाजपा जरूर बैकफुट में आयी है लेकिन उत्तरप्रदेश विधानसभा का चुनाव जीत गयी तो किसान आंदोलन भी कमजोर हो जायेगा, क्योकि देश दुनिया में यही संदेश जायेगा कि किसान आंदोलन देश का आंदोलन ना होकर कुछ क्षेत्र के लोगों का आंदोलन है।