नक्सलवाद की समस्या खत्म नही हुई है बस्तर से, धर्म का विवाद अपनी जड़े जमाने लगा है
बस्तर में लम्बे समय से धर्मांतरण का मुद्दा राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है, इस मुद्दे को एक बार फिर विपक्षी दल भाजपा हवा दे रही है। इसी बीच आदिवासी समाज हिन्दू देवी देवताओं को लेकर चल रहे विवाद से मामला और भी गहरा गया है। बस्तर जो पहले ही नक्सलवाद की समस्या से जूझ रहे है, वही विकास के इस युग में धर्म से जूडे मुद्दों पर भी विवाद गहराने से बस्तर में शांति कैसे कायम होगी?
बस्तर में आदिवासियों के बीच जहां एक तरफ यह नारा लगाया जा रहा है कि हम हिन्दू नही है, वही दूसरी तरफ सर्व आदिवासी समाज से जूडे लोग का कहना है कि आदिवासी सनातन धर्म को मानते है। जिसका प्रमाण है बस्तर क्षेत्र में हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियों और मंदिरों का होना। सर्व आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि आदिवासी समाज के कुछ लोगों द्वारा अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए समाज को भड़काने का काम कर रहे है। उनका भी मानना है कि इससे बस्तर में अशांति फैल सकती है। वही दूसरी तरफ हिन्दू देवी देवताओं का पूजा अर्चना का विरोध करने वाले आदिवासियों ने 20 सितंबर को नाकेबंदी की बात कही है। जो स्पष्ट करता है कि मूर्ति पूजा को लेकर आदिवासियों में ही दो फाड़ हो गये है, दोनों अपने अपने को सही बताने के लिए अपने अपने तर्क भी दे रहे है। सरकार व जिम्मेदार लोगों ने समय रहते दोनों पक्षों के बीच तालमेल बैठा कर मामले का समाधान नही किया तो निश्चित ही आने वाले दिनों में धर्मांतरण की तरह ही यह भी एक बड़ा मुद्दा बन जायेगा, जो बस्तर की अशांत करने के लिए काफी है। जानकारों का कहना है कि बस्तर जो लम्बे समय से नक्सलवाद की समस्या से जूझ रहा है इसका समाधान अभी तक सरकार नही खोज पाई है, अगर सरकार व जिम्मेदार लोगों ने हिन्दू धर्म व मूर्ति पूजा को लेकर आदिवासियों के बीच बढ़ रहे विवाद का पटाक्षेप नही किया तो नक्सलवाद की तरह यह भी एक गंभीर समस्या बन जायेगी। बस्तर में पहलें ही धर्मांतरण का मुद्दा गर्माया हुआ है, ऐसे हालातों में मूर्ति पूजा का विरोध होना संकेत दे रहा है कि बस्तर इस विकास के युग में धर्म के विवाद में घिरता जा रहा है।