राज्य निर्माण की तरह ही खेल अकादमी भी बिलासपुर और रायपुर में बटी
बस्तर में खेल प्रतिभाओं की भरमार होने के बाद भी राज्य सरकार ने एक सात साथ खेल अकादमियों की घोषणा की, जिसमें बस्तर को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। राज्य बटंवारे की तरह ही खेल अकादमी का भी बंटवारा भी रायपुर और बिलासपुर के बीच हो गया। सवाल यह है कि क्या बस्तर के जनप्रतिनिधि बस्तर की खेल प्रतिभाओं को खेल अकादमी दिलाने के लिए कोई लड़ाई अपनी सरकार के खिलाफ लड़ेगें?
बस्तर शोषण का हवाला देकर भाजपा और कांग्रेस बस्तरवासियों का वोट हासिल करके सरकार तो बना लेते है लेकिन बस्तर की लचर नेतागिरी के कारण बस्तर को उसका उचित हक नही दिला पाते है। राज्य सरकार ने राज्य मेें खेलों के विकास के लिए खेल अकादमी बनाने की घोषणा की, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बिलासपुर में हॉकी, तीरंदाजी, एथलेटिक्स और कबड्डी की तथा रायपुर में तीरंदाजी, बालिका फुटबंाल एवं बालक बालिका एथेलेटिक्स अकादमी का विधिवत शुभांरभ किया। सवाल यह है कि बस्तर में प्रतिभाओं की कमी नही होने का दावा नेता व अधिकारी आये दिनों खेल आयोजनों में करते रहते है, क्या उनकी जिम्मेदारी नही थी वह बस्तर में भी किसी एक खेल अकादमी के खेले जाने का दबाव बनातें क्योकि लम्बे समय से बस्तर में खेल अकादमी खोलने की आवाज लगायी जा रही है। जिससे बस्तर की खेल प्रतिभाओं को भी अपनी प्रतिभा निखारने का मौका मिले। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बस्तर की कमजोर राजनीति के चलते बस्तर सिर्फ सत्ता बनाने के लिए ही राजनीतिक दल उपयेाग करते आये है और आगे भी करते रहेगें। छत्तीसढ़ राज्य बनने के बाद भी बस्तर को कुछ नही मिला, उसी तरह ही खेल अकादमी में भी बस्तर को बाबा जी का ठल्लू ही मिला है। बस्तर की सुविधाओं को लेकर बस्तर के नेता अपने पार्टी के आला नेताओं के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साहस नही कर पाते है जिसकी वजह से सत्ता बदलने के बाद भी बस्तर के शोषण का सिलसिला जारी है। बस्तर प्राधिकरण का निर्माण बस्तर विकास के लिए किया गया लेकिन इसका पैसा भी राज्य के दूसरे हिस्सों में खर्च किया जाता है जिसका विरोध बस्तर के जनप्रतिनिधि नही कर पाते है। जब तक बस्तर ने नेता पार्टी हित छोड़ कर बस्तर की लड़ाई लडऩे का साहस नही दिखायेगें तब तक इसी तरह बस्तर का शोषण होता रहेगा, और राजनीतिक दल सिर्फ आरोप प्रत्यारोंप की राजनीति करके अपना उल्लू सीधा करते रहेगें।