May 1, 2025

70 साल बाद भी जातिवाद हावी है देश में

आरक्षण खत्म करने की मांग करने वाले जातिवाद की राजनीति करने वालों पर सवाल क्यो नही उठाते

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि कुछ लोगों को यह रास नही आ रहा है कि दलित, आदिवासी, ओबीसी और महिला मंत्रियों का परिचय कराया जाये। यह कौन सी मानसिकता है कि आदिवासी के बेटे, दलित के बेटे और किसान के बेटे पर गौरव करने को लोग तैयार नही है, साबित करता है कि देश में जातिवाद की पकड़ कितनी मजबूत है कि 70 सालों के बाद भी उस पकड़ को तोड़ पाने में सरकार पूरी तरह से असफल रही है। देश की कमान काबिल देशवासियों की जगह जातिवाद को ध्यान में रख कर दी जाती है, ताकि वोट बैंक की राजनीति जारी रहे। गौरतलब है कि एक तरफ देश में आरक्षण खत्म करने की मांग उड़ रही है, कि काबिल व्यक्ति को मौन नही मिल पाता है वही दूसरी तरफ देश की कमान जातिवाद को ध्यान में रख कर दी जा रही हेै जिसकी वजह से प्रधानमंत्री को मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार के बाद विपक्ष के विरोध के चलते परिचय नही दे पाने पर यह कहना पड़ा कि कुछ लोग आदिवासी के बेटे, दलित के बेटे, और किसान के बेटे को गौरव करने को तैयार नही है। सवाल यह हेै कि इसके पूर्व मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में क्या किसान, आदिवासियों व दलीतों को मौका नही मिला था जिसके चलते इस विस्तार के बाद उन्हें इन जाति सूचक शब्दों का उपयोग करने की जरूरत पड़ रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उत्तरप्रदेश चुनाव के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जनता को दलित किसान और आदिवासी का उल्लेख करने को मजबूर होना पड़ा ताकि कमजोर जाति में यह संदेश जा सके कि प्रधानमंत्री निचले तबकों का भी कितना ध्यान रखते है। जबकि दूसरी तरफ कृषि बिल को लेकर किसान विगत सात महीनों से आदंोलन कर रहे है, जिससे मोदी सरकार बातचीत भी नही करना चाहती है, देश विकास की राजनीति से ज्यादा जातिवाद की राजनीति पर विकास कर रहा है। ऐसे हालातों में भारत विश्व गुरू बनने का सपना कैसे पूरा होगा यह सवाल भी गहराने लगा है।

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