May 1, 2025

अखाड़ों में भी राजनीतिक दलों की तरह खींचतान जारी है

अखाड़ो के बीच टकराव को खत्म करने के लिए अखाड़ा परिषद का हुआ था गठन

दुनिया एक माया है का ज्ञान देने वाले अखाडों व मठों में जमीन का विवाद लम्बे समय से चला आ रहा है, इसके अलावा अखाड़ो के बीच भी आपसी विवाद अक्सर होते रहते है। वर्ष 1954 के कुंभ में हई भगदड़ के बाद अखाड़ो के बीच टकराव खत्म करने व व्यवस्था बनाने के लिए अखाड़ा परिषद की स्थापना हुई, जिसमें सभी 13 मान्यता प्राप्त अखाडों के दो-दो प्रतिनिधि होते है जो आपस में समन्वय का काम अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के जरिए करते है जिसके महंत नरेंद्र गिरी ने विगत दिनों आत्महत्या की है। उल्लेखनीय है कि अखाड़ा परिषद बनने के बाद भी जरूर अखाड़ों को बीच विवाद तो कायम रहा है लेकिन संषर्घ की स्थिति पैदा नही हुई।

सिकंदर के समय अखाड़ो की हुई थी शुरूआत

बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए आदि शंकराचार्य ने आठवी- नौवीं शताब्दी में अखाड़ों की शुरूआत की थी। उन्होंने बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में चार धाम की स्थापना की जो बाद में मठ में तब्दिल हो गये। जो बाद में इन्ही मठों से संबद्ध 13 अखाड़े बने, जहां पर साधु- संतो को शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा दीक्षा दी जाती थी। जानकारों का मानना है कि सन्यासियां और उनसे जुड़े अखाड़ो और मठों की परंपरा बहुत पुरानी है लेकिन इन्हें सांगठनिक रूप देने का काम आदि शंकराचार्य ने नौवीं शताब्दी में किया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी का मानना है कि सिकंदर के आक्रमण के समय से ही अखाड़ो की परंपरा की शुरूआत मानी जाती है।

अखाड़ो में साधुओं को प्रवेश आसान नही

अखाड़ो का संचालन महामंडलेश्वर करते हेै उनके अधीन कई मंडलेश्वर होते है। अखाड़ा परिषद के महासचिव महंत हरि गिरी ने बताया कि एक अखाड़ा आठ खंडो और 52 केंद्रो में विभाजित बटा रहता है। अखाड़ो के हिसाब से कम ज्यादा जरूर हो सकते हैे लेकिन प्रत्येक धार्मिक केंद्र की गतिविधियोंं को एक मंहत के देख रेख में होती है। श्री गिरी बताते है कि अखाड़ो में साधुओं का प्रवेश आसान नही होता है इसके लिए उन्हेंं कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है, साधुओं के अखाड़े में प्रवेश के लिए अलग अलग व्यवस्था जरूर है लेकिन साधुओं को प्रवेश के लिए चार-पांच साल सेवा देनी पड़ती है, इसके बाद ही उन्हें कुंभ में दीक्षा दी जाती है।

अकूत संपत्ति के चलते विवाद बढ़ा

अखाड़ो के पास जमीन के साथ साथ मंदिरों की प्रबंधन की जिम्मेदारी रहती है जहां पर काफी ज्यादा चढ़ावा आता है, यही अकूत संपत्ति मठों और अखाड़ो के भीतर विवादों का कारण बनने लगी और संदिग्ध मौतों की खबरें भी आने लगी। अखाड़ो के पास दान में मिले हजारों एकड़ जमीन है जिसका अखाड़े मुनाफा कमाने में करने लगे हैं। यहंा तक की अखाड़ों की जमीन में होटल और अपार्टमेंट तक बना दिए गए हैं और जमीन भी बेच दी गयी है।

अखाड़ो में लोकतंत्र नही है

अखाड़ो में लोकतंत्र नही है, क्योकि महंत जिसे चाहे उसे अपना उत्तराधिकारी बना सकता है , महंत नरेंद्र गिरी के मामले पर भी ऐसा ही कुछ देखने का मिला पहले उन्होंने महंत आनंद गिरी को उत्तराधिकाीर बनाया बाद में बलवीर पूरी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। इसके साथ ही राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के चलते ही विवाद की स्थिति पैदा होने लगी है।

महामंडलेश्वर बनाने पर भी हुआ विवाद

धन व राजनीतिक प्रतिष्ठा के चलते अखाड़ो में महामंडलेश्वरों की संख्या बढऩे लगी है मनमाने तरीके से महामंडलेश्वर बनाए भी गए। वर्ष 2015 में सचिन दत्ता नाम के एक शराब और रियल एस्टेट व्यवसायी को महामंडलेश्वर बनाने पर नरेंद्र गिरी को संतो के कोपभाजन का शिकार भी होना पड़ा था। संतों के दबाव में बाद में सचिन दत्ता को दी गयी महामंडलेश्वर की पदवी वापस लेनी पड़ी। महामंडलेश्वर पद के लिए भी विधायक व सांसद की टिकट की तरह लाखों रूपये के लेन देन के आरोप थे लेकिन किसी भी स्त्रोत से इन आरोपों की कमी पुष्टि नही हो पाई। इसके बाद 2017 में महामंडलेश्वर बनाने के लिए अखाड़ा परिषद ने नई प्रक्रिया तय की और फैसला हुआ कि बिना समुचित पड़ताल के महामंडलेश्वर का पद नही दिया जाएगा। 2014 में महंत ज्ञान दास की जगह नरेंद्र गिरी को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया लेकिन महंत ज्ञानदास ने नरेंद्र गिरी के निर्वाचन की हाई कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया लेकिन नरेंद्र गिरी को उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में अध्यक्ष स्वीकार कर लिया गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *