आप की टिकट मिलने के बाद आशु बांगड़ ने पार्टी छोड़ी
दिल्ली के बाद पंजाब में सत्ता का सपना बुन रही आप को फिरोजपुर देहात से घोषित उम्मीदवार आशु बांगड़ ने झटका दिया है, उन्होने पार्टी से इस्तीफा देते हुए कहा कि दिल्ली से आये आब्जर्वर बदतमीजी से पेश आने के साथ ही वालंटियर की आवाज दबाई जा रही है। पंजाब प्रभारी राघव चड्ढा पर आरोप लगाया कि वह कंपनी की तरह काम कर रहे है। टिकट मिलने के बाद प्रत्याशी के द्वारा अपनी पार्टी को कठघरे में खड़ा करना मामले की गंभीरता को दर्शाता है। वही दूसरी तरफ जालंधर पश्चिम से 28 और जालंधर मध्य से 37 आप कार्यकर्ताओं ने तानाशाही रवैये के चलते पार्टी छोड़ दी। कार्यकर्ताओं का कहना स्थानीय नेताओं को कोई आजादी नहीं है।
आम आदमी पार्टी से टिकट मिलने के बाद आशु बांगड़ का पार्टी से इस्तीफा देने को आप के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। राजनीतिक जानकरों का कहना है कि इससे जनता में यही संदेश गया कि पंजाब में पार्टी के सत्ता की दौड़ में नहीं है, सिर्फ हवा ही बनाई जा रही हैं। क्योंकि चुनाव के इस मौसम में जब नेता टिकट के लिए पार्टी छोड़ रहे है, ऐसे में सत्ता में काबिज होने वाली पार्टी का टिकट मिलने के बाद कोई कैसे छोड़ सकता है? आज की राजनीति में वह किसी भी प्रकार का समझौता करने को तैयार हो जाएगा।
पंजाब चुनाव की तारीख 14 फरवरी से 20 फरवरी चुनाव आयोग ने जरूर कर दी, लेकिन आप की टिकट मिलने के बाद आशु बांगड़ का पार्टी छोड़ना, आम आदमी पार्टी के पंजाब मिशन को बड़ा नुक्सान पहुंचायेगा। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आशु बांगड के कांग्रेस में शामिल होने की संभावना है। सोनू सूद की बहन मालविक के कांग्रेस में शामिल होने से पंजाब कांग्रेस को एक नई ताकत मिली, इसके बाद आप की टिकट मिलने के बाद अगर आशु बांगड़ा कांग्रेस में शामिल होते हैं तो निश्चित ही आप के पंजाब मिशन पर एक बार फिर पानी फिर जायेगा।
तानाशाही के चलते 65 आप नेताओं ने पार्टी छोड़ी
विधान सभा चुनाव के पूर्व दो विधानसभा से 65 आप कार्यकर्ताओं के पार्टी छोड़ने से आप की मुश्किलें बढ़ गई है । पार्टी पदाधिकारियों ने पार्टी के आला नेताओं पर तानाशाही और स्थानीय नेताओं के पास किसी प्रकार की शक्ति नहीं होने का आरोप लगाया है। गौरतलब है कि 2017 में विधानसभा का चुनाव जीते आधिकांश आप विधायक दिल्ली की तानाशाही के चलते पार्टी छोड़ चूके है, इसके बाद भी पार्टी की कार्यशैली में किसी तरह का बदलाव नही हुआ, जिसकी वजह से चुनाव के पूर्व एक बार फिर पार्टी छोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया है।