क्या मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए नोबल पुरस्कार के नामांकित करने वाले संगठन ने विपक्ष से हाथ मिलाया?
क्या नोबोल पुरस्कार के नामांकित करने वाली संगठन भी विपक्ष के साथ मिलकर मोदी सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रही है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योकि नोबल पीस पाइज के लिए नामांकित लोगों की सूची में टाइम पत्रिका की वेबसाइट के अनुसार भारतीय फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा भी शामिल किया गया है। गौरतलब है कि मोहम्मद जुबैर द्वारा एक फिल्म के फोटो डालने के मुद्दे पर उनके ऊपर दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज करके जेल में डाला था, इसके बाद यूपी में भी उनके खिलाफ कई मामले दर्ज हुए है, वर्तमान में वह जमानत पर बाहर है। ऐसे विवादित व्यक्ति को नोबोल पीस पुरस्कार के लिए नामांकित होने से कही ना कही मोदी सरकार की ताकतवर छवि पर भी सवाल उठाता है। क्योकि भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा को भाजपा से निष्कासित करने में कही ना कही मोहम्मद जुबैर का हाथ है, जिसकी वजह से नुपूर शर्मा ने मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दिल्ली पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी।
मोहम्मद जुबैर, प्रतिक सिन्हा के साथ नोबल के शांति पुरस्कार के लिए नामांकित हुए
मोदी सरकार को बदनाम करने में क्या विपक्ष ने नोबोल पुरस्कार के लिए उम्मीदवारों का चयन करने वाले नॉर्वो के सांसदों और ओस्लो के पीस रिसर्च संस्थान के साथ मिलकर ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर को नोबोल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करके कराया हैै? क्योकि मोहम्मद जुबैर को भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद पर की गई विवादी टिप्पणी के बाद ऐसा राजनीतिक पारा गर्माया कि भाजपा ने उन्हें 6 साल के लिए पार्टी ने निलंबित कर दिया, इसके कुछ समय के बाद उनके 2018 के एक ट्वीट पर कार्यवाही करते हुए मोहम्मद जुबैर को तिहाड़ तेल में रखा, पुलिस कार्यावाही का विरोध भी हुआ था। पुलिस का मानना है कि मोहम्मद जुबैर का ट्वीट भड़काऊ और दो धर्मो के बीच नफरत भड़काने वाला है। सवाल यह है कि दिल्ली पुलिस के आला अधिकारी व मोदी सरकार के नेता भी जब मोहम्मद जुबैर के ट्वीट को भड़काने वाला व दो धर्मो के बीच नफरत फैलाने वाला मान रही है तो फिर नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित करने वाले लोगों ने मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा को शांति का नोबेल पुरस्कार के लिए कैसे चुना गया? यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब कम से कम मोदी सरकार को तलाशने की जरूरत है, क्योकि इस पुरस्कार के लिए पूरी दुनिया के 343 उम्मीदवार बताएं जा रहे है जिसमें 251 व्यक्ति और 92 संस्थान है, भारत के और किस व्यक्ति को इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है इसकी कोई जानकारी नही है। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि मोहम्मद जुबैर और प्रतिक सिन्हा को शांति का नोबल पुरस्कार ना भी मिले, लेकिन उनका इस पुरस्कार के लिए नामांकित होना भी कही ना मोदी सरकार की विश्व गुरू बनाने के वादे पर सवाल उठाता है कि मोदी सरकार जिस पर नफरत फैलाने वाला व दो धर्माे का लडऩे के लिए जिम्मेदार बताते हुए उसे जेल में डाला था उसे कैसे और क्यों नोबल के शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है ?