देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एक और पहचान को खत्म करने जा रही है मोदी सरकार
राजपथ का नाम जिस तरह से मोदी सरकार ने कर्तव्यपथ रखा उसी तरह ही देश के एम्स का नाम बदलने की तैयारी मोदी सरकार का स्वास्थ्य विभाग करके देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एक और पहचान को खत्म करने का प्रयास कर रहा है, लेकिन एम्स की फैकल्टी एसोसिशन ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि इससे संस्थान अपनी पहचान खो देगी, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार एम्स फैकल्टी एसोसिशन की बातो को गंभीरता से लेगी या फिर जो एक बार कमिटमेंट कर लिया तो उसके बाद अपनी भी नही सुनता के तर्ज पर एम्स के नाम बदलेगी? क्याोकि देशवासियों की रोजमर्रा की समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए नाम बदलने की रणनीति बेहद ही कारगर अभी तक साबित हुई है।
एम्स के नाम बदलने का फैकल्टी एसोसिशन ने किया विरोध
मोदी सरकार नेहरू के द्वारा स्थापित एम्स का नाम बदलने की तैयारी भी शुरू कर दी है, जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग ने फैकल्टी एसोसिशन के सदस्यों से इस संबंध में राय मांगी थी। एम्स के फैकल्टी एसोसिशन ने मोदी सरकार के इस प्रस्ताव का यह कहते हुए विरोध किया है कि इससे संस्थान की पहचान खत्म हो जायेगी, फैकल्टी एसोसिशन का कहना है कि दिल्ली एम्स की स्थापना 1965में की गई थी, इसका ध्येय बेहतरीन मेडिकल शिक्षा, रिसर्च के साथ मरीजों को बेहतरीन चिकिस्सा सुविधा मुहैया कराने का था, ये सभी सुविधाएं नाम से सीधे तौर पर जुडी होने का उल्लेख करने के साथ ही ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज और हारवर्ड विवि का जिक्र करते हुए कहा कि सभी सुप्रसिद्ध संस्थानों का सदियों से एक ही नाम रखा गया है क्योकि ये ही उनकी पहचान का प्रतीक है। गौरतलब है कि मोदी सरकार देश के सभी एम्सों का नाम लोकल हीरोज, स्वतंत्रता सेनानियों, एतिहासिक घटनाओं व प्रसिद्ध जगहों के नाम पर रखकर लोकल पहचान देने की बात जरूर कह रही है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मोदी सरकार सुनियोजित तरीके से देश से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के स्थापित इस विश्व प्रसिद्ध संस्थानों को नाम बदलकर उनकी पहचान को खत्म करने की कोशिश कर रही है। सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार फैकल्टी एसोसिशन की सलाह पर ध्यान देगी या सलमान खान के प्रसिद्ध डायलॉग एक बार जो कमिटमेंट कर लिया तो फिर अपने आप की भी नही सुनता के तर्ज पर मोदी सरकार एक्स का नाम बदलने को हरी झंडी प्रदान कर देगी। मोदी सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले यह सवाल जरूर उठायेगें कि जब नाम बदलने का निर्णय ले लिया गया था तो फिर फैकल्टी एसोसिशन से सलाह लेने का दिखावा क्यों किया गया।