May 1, 2025

सरकार बदलते ही पत्रकारों का विरोध भी शुरू हुआ

गोदी मीडिया ने बिहार की सत्ता बदलते ही नीतिश कुमार की नाकामी को जनता को सामने लाया ? जिस पर भाजपा की सरकार रहते हुए मौन साधे हुए थे

उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव ईमानदार पत्रकार की लिस्ट बनाने के साथ ही उसमें आप का नाम भी शामिल है, कह करके स्वतंत्र भारत में पत्रकारों के सम्मान को नई उचॉईयों तक पहुचंाया दिया था। बिहार में भाजपा को सत्ता से बाहर करन के बाद पत्रकार अंजना ओम कश्यप के साथ बदसलूकी का विवाद इन दिनों चर्चा का विषय जरूर बन गया है। मोदी सरकार में कई और पत्रकारों के खिलाफ भी किसान आंदोलन व सीएए के दौरान भी विरोध किया गया था। सवाल यह है कि पत्रकार जिसे आम जनता की आवाज माना जाता है, उससे जनता के साथ राजनीतिक दलों के नेता भी नाराज है, क्योकि टीवी बहस में भी अनेकों लोगों ने पत्रकारों को मोदी सरकार के प्रवक्ता तक कह दिया है। बीएनडी, ऐसा ही एक शब्द है जो पत्रकार को कहा गया था।
मोदी सरकार आने के बाद पत्रकार आम जनता की आवाज बनने की जगह सरकार की आवाज बन जाने की वजह से महंगाई , डॉलर के मुकाबले रूपये की गिरती हालत, पेट्रेाल व डीजल के दाम शतक पार करने के बाद भी राष्ट्रीय मीडिया में यह समस्या नही दिखाई दे रही है। बिहार में जेडीयू ने भाजपा का साथ छोड़कर आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद पत्रकारों ने जिस तरह से बिहार की प्रतिव्यक्ति आय से लेकर, बेरोजगारी व स्वास्थ्य की लचर हालत पर चिंता जाहिर की, उससे यह सवाल तो उठता है कि क्या जेडीयू के भाजपा छोड़कर आरजेडी से हाथ मिल लेने से यह समस्या अचानक पैदा हो गई या बिहार में यह समस्या पहले से थी लेकिन भाजपा सत्ता का हिस्सा होने के कारण तथाकथित गोदी मीडिया को यह दिखाई नेही दे रहा है, भाजपा के सत्ता से हटने के बाद ही यह सब समस्या उन्हें नजर आने लगी, जो बताता है कि मीडिया आम जनता की नही सरकार की आवाज बन गई है। नीतिश कुमार ने पाला बदला तो नीतिश कुमार की नामाकी दिखाने के लिए यह सब देश की जनता को बताया गया? जब जेडीयू महागठबंधन तोड़ कर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी उस वक्त मीडिया को नीतिश कुमार की इन कमजोरियों को देश की जनता से साझा नही किया गया था। बिहार में बदले राजनीतिक घटनाक्रम की रिपोर्टिग करने पहुंची पत्रकार अंजना ओम कश्यप के पटना आने पर उनके खिलाफ नारेबाजी के अलावा बदसलूकी की गई। जिसकों लेकर एक बार फिर भाजपा व मीडिया, बिहार की नवगठित सरकार पर ही निशाना साधने की कोशिश कर रहा है कि बिहार में फिर से गुंडा राज वापस आ रहा है। लेकिन इस पर कोई चर्चा क्यों नही कर रहा है मोदी सरकार आने के बाद आम जनता की आवाज माना जाने वाला पत्रकारों का जनता के बीच भरोसा क्यों लगातार कम होता जा रहा है। सिर्फ अंजना ओम कश्यप के साथ घटित यह घटना पहली नही है, इसके पूर्व किसान आंदोलन में भी पत्रकारों का विरोध का सामना करना पड़ा था वही सीएए के आंदोलन में भी पत्रकारों को शाहीनबाग स्थित घरना स्थल जाने से रोका गया, और भी कई मामले है जहां पर पत्रकारों का विरोध हो चुका है। सवाल यह है कि आंदोलन में बैठे आंदोलनकारी चाहते है कि उनकी आवाज मीडिया बने, लेकिन मोदी सरकार पत्रकारिता का इतना विकास हो गया है कि आंदोलन से जूडे लोग भी गोदी मीडिया से दूरी बनाये रखना चाहते है, क्योकि उन्हें इस बात का डर है कि मीडिया उनकी आवाज ना बन कर सरकार के पक्ष वाली ही खबर दिखाकर उनके आंदोलन को कमजोर करेगा।

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