पूजा स्थल अधिनियम के विरोध में भाजपा ने सीएए या किसान बिल की तरह सड़क की लड़ाई क्यों नही लड़ी थी, हालात को देखते हुए
कांग्रेस सरकार द्वारा 1991 में लाये गये पूजा का स्थान अधिनियम बिल का वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा विरोध किया गया था या नही, इसकी जानकारी गूगल से नही मिल सकी, लेकिन वर्तमान में लूप लाईन में चल रही भाजपा नेत्री उमा भारती ने जरूर इस बिल का विरोध यह कहते हुए किया था कि 1947 में धार्मिक स्थलों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखना बिल्ली को देखकर कबूतर के आंख बंद करने सरीखा है। वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह कीइस बिल को लेकर कोई टिप्पणी भी गूगल में नही मिली। भाजपा ने इस बिल के खिलाफ सीएए या किसान बिल की तरह सड़क की कोई लड़ाई लड़ी ऐसी भी कोई जानकारी नही है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस सरकार मे लाये गये बिल के खिलाफ भाजपा ने सड़क की लड़ाई क्यों नही लड़ी थी, जबकि इस बिल से स्पष्ट हो गया था कि मथुरा कांशी सभी मुद्दे ठंडे बस्ते में चले जायेगें? क्या अब मोदी सरकार इस बिल को आने वाले दिनों में रद्द करने की दिशा में आगे बढ़ेगी? यह सवाल कुछ ऐसा ही है जैसा कि आरएसएस अखंड भारत की बात तो करता है लेकिन जब देश बटवांरे की तरफ बढ़ रहा था तो इस बटंवारा को रोकने के लिए सड़क की लड़ाई लड़ी थी या नही उसके बारे में कोई कुछ नही बताता है।
क्या मोदी सरकार कांग्रेस सरकार के पूजा स्थल अधिनियम कानून को रद्द करेगी?
पूजा स्थल अधिनियम बिल जब आया उस वक्त की श्री मोदी की प्रतिक्रिया गूगल में नही मिल सकी
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बांग्लादेश की स्वतंत्रता दिलाने में योगदान था, ऐसे में कांग्रेस सरकार के द्वारा अयोध्या विवाद के मद्देनजर 1991 में लाये गये पूजा स्थल अधिनियम बिल को जब पास किया गया तो उस वक्त मोदी जी ने क्या किया था यह तो आने वाले दिनों में स्वयं ही बता सकते है, क्योकि यह बिल कही ना कही प्राचीन भारतीय मंदिर विवाद को ठंडे बस्ते में डाल देता है। गूगल करने में यह जरूर पता लगा कि वर्तमान में भाजपा में लूप लाईन में चल रही उभा भारती ने जरूर इस बिल का विरोध करते हुए कहा था कि क्या औरंगजेब का इरादा मंदिर के अवशेष को एक मस्जिद की जगह पर छोड़ देना हिन्दुओं को उनके एतिहासिक भाग्य की याद दिलाना और मुसलमानों की आने वाली पीढिय़ों को उनके अतीत के गौरव व शक्ति की याद दिलाना नही था? लेकिन भाजपा ने इस बिल के खिलाफ सीएए या किसान आंदोलन की तरह सड़क की लड़ाई इस बिल को रद्द करने के लिए लड़ी थी इसकी जानकारी नही मिल पाई। वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग के मिल जाने के बाद एक बार फिर पूजा स्थल अधिनियम बिल को रद्द करने की आवाज भाजपा के अंदर से ही उठने लगी है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह बिल अयोध्या रथ यात्रा के बाद लाया गया था इसलिए भाजपा संगठन को सीएए या फिर किसान बिल की तरह सड़क में विरोध करना चाहिए था, क्योकि यह भारतीय संस्कृति से जूडा मामला था, जिसकी लड़ाई भाजपा लड़ रही थी। ज्ञापवापी मस्जिद से सर्वे के बाद मोदी सरकार क्या कांग्रेस सरकार के लाये पूजा स्थल अधिनियम को रद्द करके भारतीय प्राचीन मंदिरों को फिर से स्थापित करने की दिशा में कदम बड़ा कर यह संदेश दे सकती है कि देश हिन्दू राष्ट्र की तरफ बढ़ रहा है, जिसकी मांग साधु संत भी कर रहे है। ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने पर सबसे ज्यादा खुशी भाजपा नेताओं के चेहरे पर दिखाई दे रही है इसलिए उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह मोदी सरकार पर पूजा अधिनियम बिल को रद्द करके प्राचीन भारतीय संस्कृति के मंदिरों के स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़े, क्योकि देश की अधिकांश जनता भी यही चाहती है। परंतु मोदी सरकार अभी तक पूजा स्थल अधिनियम बिल को रद्द करने संबंधी कोई भी बात नही की है। जानकारों का कहना हेै कि शिवलिंग की पूजा की मांग करने वालों को मोदी सरकार से पूजा स्थल अधिनियम बिल को रद्द करने की मांग करनी चाहिए ताकि भविष्य में पूजा करने का रास्ता साफ हो सकें।