May 1, 2025

बैंककर्मियों की हड़ताल टाईमपास के अलावा कुछ नही?

किसानों को अपने मांग पूरी करने में एक साल से ज्यादा समय लगा, बैंककर्मियों की मांग कैसे दो दिन की हड़ताल में पूरी हो जायेगी? मोदी सरकार में

मोदी सरकार के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको के निजीकरण के विरोध में बैंक कर्मचारी दो दिवसीय हड़ताल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय इसलिए बन गयी है कि किसानों को कृषि बिल को मोदी सरकार से वापस कराने के लिए एक साल से अधिक समय तक आंदोलन करने के साथ ही आगामी विधानसभा में भाजपा अपनी हार को देखते हुए कृषि बिल वापस लेने को मजबूर हुई। बैक यूनियन की दो दिवसीय हड़ताल आगामी विधानसभा चुनाव में भी किसी प्रकार का कोई असर डालने में सफल नही हो पायेगी, क्योकि बैंककर्मियों का किसानों की तरह व्यापक जनाधार भी नही है। इसलिए यह हड़ताल बैंक कर्मियों को सिर्फ छुट्टी के अलावा कोई फायदा नही होने वाला है।
मोदी सरकार के द्वारा मनमानी तरीके से लाए गये कृषि बिल को वाापस कराने के लिए किसानों को एक साल से अधिक समय तक आंदोलन करने के साथ ही यह संदेश भी देने लगे थे कि भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में हराना है। उपचुनाव में हिमालच प्रदेश की हार को देखते हुए मोदी सरकार ने आनन फानन में कृषि बिल वापसी की घोषणा करके आगामी विधानसभा चुनाव में किसान मुद्दे को खत्म करने की कोशिश की, ताकि किसान आंदोलन के चलते आगामी विधानसभा चुनाव हार ना जाये। ऐसे हालातों में युनाईटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के विरोध में 16 व 17 दिसंबर की हड़ताल मोदी सरकार पर कितना दवाब बना पायेगी? यह बात हड़ताल करने वाले कर्मचारियों को भी पता है, लेकिन विरोध की खानापूर्ति करने के लिए यह हड़ताल करने का मजबूर है, ताकि अपने आप को तशल्ली दे सके कि हमने कुछ किया? पूर्व में भी बैंककर्मियों के द्वारा निजीकरण के खिलाफ हड़ताल करने के बाद भी मोदी सरकार बैंको के निजीकरण के अपने अभियान को आगे बढ़ाती रही है,ऐसे माना जाता है कि मोदी सरकार ने एक बार जो कमिट्मेंट कर लिया तो फिर अपने नेताओं की भी नही सुनती है तो बैंक यूनियन के नेताओं की क्या सूनेगी? सत्ता जाने के डर से जरूर किसानों की मांग सूनी लेकिन इसके लिए भी एक साल से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद। यूनियन का कहना हेै कि 13 कॉरपोरेट्स के कारण सरकारी बैंको को ङ.85 लाख करोड़ रूपए का नुक्सान हुआ है। लेकिन भाजपाईयों को कहना हे कि मोदी सरकार बैंको को निजीकरण को राष्ट्रहित के चलते ही कर रही है। देश में भाजपाईयों के द्वारा यह आमधारणा बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि मोदी सरकार हर काम देश हित में करती है तो फिर बैंको का निजीकरण कैसे देश विरोधी हो सकता है?

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