May 1, 2025

कृषि बिल पर प्रधानमंत्री की रणनीति की हवा भाजपाई ही निकला रहे

किसान आंदोलन खत्म होने के पूर्व ही भाजपाई कृषि बिल वापसी के संकेत देने लगे है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कृषि बिल वापस लेकर किसानों की नाराजगी को दूर करने का प्रयास कर रहे है लेकिन दूसरी तरफ भाजपा नेता ही प्रधानमंत्री की इस कोशिश पर पानी फेरने की हर संभव कोशिश करते नजर आ रहे है। जिसके चलते किसानों में संशय की स्थिति बनी हुई है, ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि बिल वापसी की घोषणा के बाद भी किसान आंदोलन खत्म करने को तैयार नही है वही दूसरी तरफ भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने कहा कि बिल बनते हैं, बिगड़ते हैं फिर वापस आ जाएंगे, वही राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने भी जरूरत पडऩे पर कृषि कानूनों को फिर से लाने की बात कह करके स्पष्ट संकेत दिया कि कृषि बिल फिर वापस आ सकता है, मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने भी कृषि बिल वापसी की संभावनाएं वक्त करके स्पष्ट कर दिया कि कृषि बिल सिर्फ आगामी विधानसभा चुनाव के मदृदेनजर ही वापस लिये गये है। राजनीतिक पंडि़तों का मानना है कि कृषि बिल को लेकर भाजपा के अंदर की घमासान से किसानों के साथ ही आम जनता के बीच भी भ्रम की स्थिति बनती जा रही है। जिसका नुक्सान विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ ही आंदोलन को खत्म करने में भी समस्या आ सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कृषि बिल वापसी के बाद भाजपा के अंदर ही इस बिल को लेकर घमासान नजर आने लगा है। भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने कृषि बिल वापसी की संभावना व्यक्त करते हुए कहा कि बिल बनते है, बिगड़ते हैं फिर वापस आ जाएंगे। इसके बाद मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने भी कृषि बिल वापसी के संकेत देते हुए कहा कि कानून को अच्छी नीयत से लाया गया थाख् इससे परिवर्तन आता और किसान खुश होता। लेकिन हम किसानों को समझा पाने में नाकाम रहे, हम अब किसानों को प्रशिक्षित करेंगे, सिखाएंगे, समझाएंगे और जब सब सहमत होंगे तो फिर से इस कानून को लाया जाएगा। गौरतलब है कि कृषि बिल लाने के पूर्व किसानो को इस बिल को समझाने की कोशिश क्यो नही की गयी। कोरोना काल में कृषि बिल अध्यादेश के माध्यय से क्यों लाया गया, और राज्यसभा में मोदी सरकार ने इस बिल पर वोटिंग क्यो नही करायी, अगर इस कृषि बिल पर मोदी सरकार की नीयत साफ थी तो।

साफ नियत से नही लाया गया था बिल

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिस तरह से इस बिल को पास किया गया वह स्पष्ट करता है कि कृषि बिल साफ नियत से बिलकुल भी नही लाया गया था, जब मामला पूरी तरह से बिगड़ गया तो साफ नियत का हवाला देकर किसानों के दर्द को काम करने की कोशिश की जा रही है। किसान आंदोलन में शामिल किसान को भाजपा नेताओं में मवाली, खालिस्तानी, टूकडे- टूकड़े गैंग, नक्सलवादी तक करार देकर देश की जनता को यह बताने की कोशिश की जा रही थी कि किसान आंदोलन किसानों का नही है। और आज भी जब कृषि बिल वापस लिया गया है तो भी यही बताने का प्रयास किया जा रहा है कि किसान आंदोलन में कुछ असामाजिक तत्व आ गये थे जिससे देश की एकता को खतरा था इसलिए मोदी सरकार ने बिल को वापस लिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *