मानसिक रूप से कमजोर जवान कैसे बस्तर को नक्सल मुक्त बना पायेगें
मरईगुडा के लिंगम पल्ली सीआरपीएफ कैंप में तैनात जवान रितेश रंजन अपने साथियों द्वारा की जा रही दुव्र्यवहार और छींटाकशी से परेशान होकर अपनी ए के 47 से गोली चला दी जिसमें चार जवान मारे गये जबकि तीन घायल हो गये। यह घटना स्पष्ट करती है कि कैंपो के अंदर भी जवानों के बीच विवाद होता है, लेकिन इसकी जानकारी जब घटना हो जाती है इसके बाद ही आला अधिकारियों को पता लग पाती है। समय रहते अगर विवादों की जानकारी आला अधिकारियों को मिल जाये तो लिंगमपल्ली जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है। जानकारों का कहना है कि लिंगम पल्ली की घटना स्पष्ट करती है कि नक्सली मोर्चो पर तैनात जवान भारी दबाव में काम कर रहे है, वह अपने जवानों की छींटाकशी को भी झेल नही पा रहे है। इस दबाव को कम करने का ठोस व ईमानदार प्रयास नही किया गया तो भविष्य में इस तरह के हादसे और भी होगें। उल्लेखनीय है कि नक्सली क्षेत्रों में तैनात जवान भी किसी ना किसी दवाब में आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे है, लेकिन आत्महत्या के कारणों की तलाश करने का प्रयास सरकार के द्वारा नही किया गया। जबकि सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की सीबीआई जांच तक करायी गयी।
नक्सली मोर्चाे पर तैनात जवानों ने अपने ही साथियों पर गोलीबारी करने के कई घटनाएं होने के बाद भी जवानों की मानसिक दवाब को कम करने का प्रयास सरकार के द्वारा सिर्फ कागजों में तो नही किया जा रहा है क्योकि कैंप के अंदर विवाद पर जवानों ने अपने सार्थियों की जान लेने की कई घटनाएं हो चुकी है। सरकार द्वाराा जवानों को मानसिक दबाव को कम करने की योजना धरातल में सफल होती तो लिंगम पल्ली जैसी घटना नही होती। इस घटना के बाद एक बार फिर जवानों के मानसिक तवाब का मामला चर्चा का विषय तो जरूर बन गया है लेकिन समस्या से निजाद दिलाने के लिए सरकारें क्या रणनीति बनाती है यह तो आने वाले दिनों में ही पता लगेंगा।
मानसिक तनाव कम करने की योजना धरातल में दम तोड़ रही है
गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू का कहना है कि फोर्स के जवानों को तनावमुक्त बनाने के लिए कैंप लगाकर काउंसिलिंग के साथ योगाभ्यास कराया जा रहा है। जवानों की समस्याओं सुनने न केवल छत्तीसगढ़ के डीजीपी, बल्कि सीआरपीएफ के भी आला अफसर कैंप या दरबार लगाकर इंटरैक्शन हैं। सवाल यह है कि सरकार द्वारा जवानों को तनावमुक्त करने के इतने प्रयास के बाद भी जवान आत्महत्या या फिर अपने ही साथियों पर गोलीबारी क्यो कर रहे है। वही अम्बेंडर अस्पताल के साइकेट्रिस्ट डॉ.सुरभि दुबे का कहना है कि हर महीने करीब 10 से 12 जवान मनोवैज्ञानिक माउंसलिंग के लिए आ रहे है।
ग्रामीण और जवानों के बीच विवाद बढ़ रहा है
सिलगेर कैंप में पुलिस गोलीबारी में मारे गये तीन ग्रामीणों के बाद से पुलिस व जवानों के बीच संघर्ष भी बढ़ता जा रहा है,इस घटना की जांच रिपोर्ट अभी तक नही आने से सरकार पर भी सवाल खड़े हो रहे है? एड़समेटा की न्यायिक जांच की रिपोर्ट भी बता रही है कि ग्रामीणों को फर्जी मुठभेड़ में मारा जा रहा है। जो स्पष्ट करता है कि ग्रामीणों और जवानों के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है। जबकि नक्सली समस्या का समाधान ग्रामीणों को विश्वास में लिये बगैर संभव नही है। इसके बाद भी जवानों और ग्रामीणों के बीच तनाव सिलगेर विवाद के बाद बढ़ ही रहा है।
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