सिलगेर मामले पर मौन रहने के बाद, एड़समेटा पीडि़तों को मुआवजा दिलाने के मामले पर भी मौन
पत्थलगांव में मारे गये लोगों की चिंता है, लेकिन निर्दोष आदिवासी के मुआवजा के लिए कोई लड़ाई नही
बस्तर में अपने खोये जनाधार को वापस पाने के उद्देश्य से भाजपा ने छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद पहली बार प्रदेश स्तरीय चिंतन शिविर का आयोजन बस्तर में किया, इसके बाद भी भाजपा नेता आदिवासियों की समस्याओं की लड़ाई की जगह दूसरे क्षेत्रों की लड़ाई में ज्यादा ध्यान केंद्रित किये हुए है, ऐसे में बस्तर में भाजपा कैसे मजबूत होगी? यह अहम सवाल है जिसका जवाब भाजपा नेता देने से बच रहे है जिसका फायदा कांग्रेस को मिल रहा है। ज्ञात हो कि बस्तर से भाजपा का पूरी तरह से सफाया हो गया है।
सिलगेर मामले पर भाजपा ने सत्तारूढ़ कांंग्रेस को कठघरे मेेंंं खड़ा करने का प्रयास नही किया, जबकि इस घटना में तीन ग्रामीणों की मौत हो गयी थी, इंसाफ के लिए आदिवासियों ने लम्बी लड़ाई भी लड़ी। लखीमपुर घटना के बाद भाजपाईयों को सिलगेर पीडि़तों की याद आयी और उन्हें भी राज्य सरकार से लखीमपुर की तरह 50 लाख रूपये दिये जाने की मांग की, लेकिन दूसरी तरफ भजपा की जांच रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नही किया गया है कि मारे गये लोगों को भाजपा ग्रामीण मानती है या नक्सली। पत्थलगांव में हुए सड़क हादसे में मारे गये लोगों को भी एक करोड़ रूपये मुआवजा दिये जाने की मांग कर रहे है लेकिन एड़समेटा नक्सली वारदात में मारे गये लोगों के परिजनों को अभी तक मुआवजा देने की आवाज भाजपा से नही उठी है। न्यायिक जांच में स्पष्ट हो गया है कि यह मुठभेड़ पूरी तरह से फर्जी थी, ऐसे में विपक्षी दल होने के नाते भाजपा नेताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वह सत्ता पक्ष से पीडि़त लोगों को मुआवजा दिलाने की लड़ाई लड़े, चाहे यह घटना भाजपा सरकार में ही क्यो ना हुई हो।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बस्तर को सत्ता का प्रवेश द्वार कहा जाता है, लेकिन भाजपा संगठन बस्तर के मुद्दे पर जमीनी लड़ाई लडऩे की जगह कभी कवर्धा के मुद्दे पर लड़ाई लड़ती नजर आती है तो कभी पत्थलगांव में हुए हादसे पर गंभीर दिखती है, इस तरह की राजनीति से बस्तर के आदिवासियों को न्याय तो नही मिल जायेगा, बल्कि आदिवासियों में भाजपा के प्रति नाराजगी ही बढ़ेगी। बस्तर के आदिवासियों की लड़ाई कब भाजपा लड़ेगी? यह ऐसा सवाल है जो आदिवासियों के बीच भी चर्चा का विषय बनता जा रहा है, क्योकि विपक्ष में रहते भाजपा पीडि़त आदिवासियों के साथ नही खड़ी है तो फिर सत्ता में आने के बाद कैसे आदिवासियों के हित में काम करेगी। भाजपा की इस कमजोरी का भरपूर फायदा कांग्रेस उठा रही है, जिसके चलते जहां सिलगेर की जांच रिपेार्ट को विलंब किया जा रहा है वह एड़समेटा रिपोर्ट आने के बाद भी सरकार ने अभी तक स्पष्ट नही किया है कि वह पीडि़तो को क्या मुआवजा देने वाली है और दोषियों पर किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही करेगी या नही? एड़समेटा के ग्रामीण पीडि़तों को मुआवजा व दोषियों पर कार्यवाही की मांग को लेकर अपने स्तर पर लड़ाई लड रहे है,और भाजपा तमाशाबीन नजर आ रही है।
किसानों से भी बड़ी लड़ाई लड़ रहे है आदिवासी
कृषि बिल के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे है जिसका विपक्षी दलों का पूरा समर्थन मिला हुआ है लेकिन बस्तर मेें आदिवासी सिलगेर या फिर एड़समेटा की लड़ाई बगैर विपक्ष के समर्थन के ही सत्ता पक्ष के साथ लड़ रहे है, जिसे निश्चित ही एक एतिहासिक लड़ाई करार दिया जा सकता है, क्योकि लोकतंत्र में सत्ता के खिलाफ विपक्ष दल के खड़े होने की पंरपरा रही है, नक्सली मामले पर विपक्ष में रहते कांग्रेस ग्रामीणों के साथ खड़ी नजर आती थी लेकिन सरकार बदलने के बाद ग्रामीणों के द्वारा लड़ी जा रही लड़ाई में विपक्षी दलों का समर्थन नही मिल रहा है। जिससे कही ना कही राजनीतिक तौर पर कवर्धा व पत्थलगांव की तरह दवाब नही बन पाने के कारण उन्हें इंसाफ नही मिल पा रहा है।