किसानों आंदोलन की तरह ही लखीमपुर घटना का भी राजनीतिकरण करने का प्रयास
राजनीतिकरण करके आंदोलन को कमजोर करने की नयी परंपरा विकसित हुई है मोदी के नये भारत में
भाजपा जिस तरह किसान आंदोलन का राजनीतिकरण करके किसान आंदोलन को खत्म करना चाहती है उसी तरह ही लखीमपुर खीरी की मामले पर भी राजनीतिक करके केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा का इस्तीफे का बचाव करती दिखाई दे रही है, जबकि किसान आंदोलन के नेता ही केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा की इस्तीफे की मांग कर रहे है। उनका कहना है कि उनके मंत्री रहते इस मामले की निष्पक्ष जांच नही हो सकती है। लेकिन भाजपा नेता गौरव भाटिया टीवी डिबेट में केंद्रीय राज्यमंत्री की हटाने की मांग कांग्रेस की मांग बता कर 1984 के दंगों का हवाला देकर मामले को रफा दफा करना चाहते है।
लखीमपुर खीरी में हुई किसानों की हत्या का मामला पर राजनीति अपने पूरे शवाब पर है, इस मामले पर नामजद आरोपी आशीष मिश्रा टेनी को गिरफ्तार हो गया है वही दूसरी तरफ उनके पिता केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा को पद से हटाने की मांग भी जोर पकडऩे लगी है, टीवी डिबेट पर भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कांगे्रेस पर दोगले होने का आरोप लगाते हुए कहा कि मामले में पहली गिरफ्तारी आशीष मिश्रा और दूसरी गिरफ्तारी अंकित दास की हुई थी। यह योगी आदित्यनाथ की सरकार है वहां कानून से ऊपर कोई नही हैं, लेकिन गिद्द राजनीति का अंत कब होगा। सुप्रिया श्रीनेत का कहना है कि अगर पिता मंत्री बने रहेंगे तो किसी को नही लगता है कि निष्पक्ष जंाच हो पायेगी। जिस पर गौरव भाटिया ने कहा कि गाजर मूली की तरह 84 के ंदंगों में कत्ले आम किसने मचाया था, नरसंहार किसने करवाया था, जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार पर एफआईआर तक नही कर पाये थे, लेकिन 35 साल बाद मोदी जी ने न्याय दिलाया। गौरव भाटिया कांग्रेस के जख्मों को कुरेद कर कांग्रेस को कठघरे में तो खड़ा कर सकते है लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के जख्मों को कुरेदने से लखीमपुर में मारे गये लोगों को इंसाफ मिल जायेगा। कांग्रेस अपनी गलतियों के कारण आज यहां तक पहुंच गयी है क्या भाजपा भी उन्ही गलतियों को दोहराने में लगी हुई है। ज्ञात हो कि लखीमपुर खीरी मामले पर भी मंत्री के पुत्र की गिरफ्तारी का दवाब किसानों के साथ ही विपक्षी दलों के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फटकार लगाने के बाद हुई, लेकिन भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया इस पूरे मामले को कांग्रेस बनाम भाजपा में तब्दिल करके कांग्रेस के काला दामन की याद दिला कर अपना दामन को साफ रखने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है। भाजपा व कांग्रेस के इस खेल में किसान नही फंसने वाले है। विपक्षी दलों के सहयोग के बाद भी किसानों ने कृषि बिल के खिलाफ विगत 11 महीने से आंदोलन कर रहे है और इस मामले पर भी दोषियो को सजा दिलाने पर आंदोलन करने की बात कह रहे है। किसानों ने भी निष्पक्ष जांच के लिए केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे की मांग की है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हर मामले का राजनीतिकरण करके आम जनता की आवाज को सरकारें दबा रही है, जबकि किसान आंदोलन पूरी तरह से गैर राजनीतिक आंदोलन है लेकिन इसे भी मोदी सरकार कमजोर करने के लिए राजनीति का शिकार बनाने का प्रयास कर रही है जिसमें वह सफल नही हो पाने के कारण परेशानियां बढ़ती जा रही है। लखीमपुर विवाद ने किसान आंदोलन का विस्तार ही किया है।
लखीमपुर विवाद किसान आंदोलन की तरह शांत नही होने वाला है
भाजपा का आलाकमान की नजर इस मामले पर बनी हुई है। केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ने कहा कि उनका इस मामले से कोई लेना देना नही है, लेकिन वह अपने पुत्र का बचाव करते जरूर दिखायी दिये क्योकि उनका कहना था कि उनका पुत्र घटना स्थल पर नही था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जांच में यह स्पष्ट हो गया कि उनका पुत्र घटना स्थल पर था तो निश्चित ही अजय मिश्रा की मुश्किलें पार्टी के अंदर बढ़ेगी क्योकि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी का आला कमान किसी भी हालत में नया जोखिम नही लेगा ,क्योकि पहले ही वह किसान आंदोलन से परेशान है। मिली जानकारी के अनुसार आशीष मिश्रा ने एसआईटी के सामने अधिकांश सवालों का जवाब नही दिया। भाजपा तत्काल केंद्रीय मंत्री का इस्तीफा लेकर यह बताना नही चाहती है कि वह किसानों या विपक्ष के दबाव में है, लेकिन यह मामला जल्द शांत हो जायेगा इसकी उम्मीद कम ही है।