April 30, 2025

असली टीएमसी और नकली टीएमसी के बीच मुकाबला

खरीद फरोख्त की राजनीति का विकास तेजी से हुआ मोदी सरकार में

भाजपा क्या बंगाल मेें टीएमसी छोड़ कर आये नेताओं के बल पर बंगाल की सत्ता पर काबिज होना चाहती है? यह सवाल इसलिए बड़ा होता जा रहा है क्योकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सभा में मिथुन चक्रवर्ती ने भाजपा का दामन थामा, ज्ञात हो कि मिथुन चक्रवती को राजनीति में लाने के साथ ही राज्यसभा संासद टीएमसी ने ही बनाया था। इसके अलावा ममता बेनर्जी के करीबी सुवेंद्र अधिकारी भी टीएमसी छोड़ कर भाजपा में शामिल होने के साथ ही टीएमसी नेता राजीव बनर्जी, विधायक बैशाली डालमिया, प्रबीर घोषाल, रूद्रनील घोष, और रथिन चक्रवर्ती के अलावा विधायक मिहिर गोस्वामी और अरिंदम भट्टाचार्य ने भी पाला बदल कर भाजपा को बंगाल की सत्ता तक पहुंचाने के लिए पसीना बहा रहे है। टीएमसी से राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी ने भी भाजपा में शामिल हो जाना साबित करता है कि भाजपा बंगाल की सत्ता तक टीएमसी बागियों सहारे ही पहुंचना चाहती है। इस पूरे घटनाक्रम से यह भी स्पष्ट हो गया कि केंद्र में मोदी सरकार रहने के बाद भी सात सालों में बंगाल में भाजपा अपनी जमीनी पकड़ नही बना पाये है इसलिए टीएमसी के नेताओं के सहारे ही सत्ता तक पहुंचने की रणनीति पर काम किया, जिसमें तत्कालीन तौर पर सफल होती दिखाई दे रही है। क्या बंगाल की जनता असली टीएमसी और नकली टीएमसी में किसकों बंगाल की कमान सौपती है यह तो 2 मई को ही पता चलेगा, लेकिन इस पूरे घटना क्रम के बाद यह स्पष्ट हो गया कि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब के बयान में दम है कि केंद्रिय गृह मंत्री अमित शाह नेपाल व श्रीलंका में भी इसी तरह से वहां के नेताओं को भाजपा में शामिल करके चुनाव लड़ा कर वहां भी भाजपा सरकार बना सकते है। इस पूरे घटना से खरीद-फरोख्त राजनीति को नया जीवन मिल गया है कि जमीन में काम करने की जगह नेताओं केा ही खरीद कर अपनी सरकार बना लों। भाजपा ने कई राज्यों में विधायक को इस्तीफा दिला कर सत्ता बदल दी है। अब बंगाल की बारी है, क्या वहां भी यह प्रयोग सफल हो पायेगा भाजपा का ।

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