May 1, 2025

बीएसपी नेता ने पत्ते खोल कर पार्टी की मुश्किलें बढ़ाई

जिला अध्यक्ष का चुनाव नही लडऩे का फैसला से पार्टी के अंदर खींचतान को मिला बढ़ावा

उत्तरप्रदेश चुनाव के पूर्व बहुजन समाजवादी पार्टी की नेता मायावती के खूल कर भाजपा के पक्ष में खड़ा होने का लाभ आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिलेगा? यह सवाल इसलिए गहराता जा रहा है। उत्तरप्रदेश के पंचायत चुनाव में बीएसपी मैदान में उतरी और मतदाताओं ने उनके प्रत्याशियों को जीताया भी, लेकिन जिला अध्यक्ष के पद के लिए मैदान में नही उतरने से यह स्पष्ट हो गया कि जिला पंचायत चुनाव में बीजेपी को मिली हार का भरपाई वह जिला अध्यक्ष पदों से करने का सुनहरा मौका दे दिया है इसलिए वह जिला अध्यक्ष के चुनाव नही लडऩे का फैसला उस वक्त लिया जब प्रत्याशियों ने फार्म तक जमा कर दिये थे। इस पूरी घटना से कही ना कही बीएसपी नेता ने उत्तरप्रदेश की जनता को यह संदेश दिया कि वह भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए किसी भी स्तर पर जा सकती है। वही दूसरी तरफ बीएसपी अपनेे दम पर विधानसभा चुनाव लडऩे का फैसला पार्टी को और रसातल में ले जायेगा, क्योकि पंचायत चुनाव में जिस तरह से जिला अध्यक्ष के मामले पर बीएसपी नेता ने रणनीति बदली, उससे कही ना कही उनके मतदाताओं के साथ ही प्रत्याशियों में भी नाराजगी बढ़ेगी। राजनीतिक जानकारों का मानना हेै कि पंचायत चुनाव में बीएसपी अगर मैदान में नही होती तो परिणाम और कुछ होता, इसलिए विधानसभा चुनाव में बीएसपी को वोट करने वाला मतदाता वोट करने से पहले जरूर सोचेगा कि बीएसपी को वोट करने की जगह वह भाजपा को वोट करे या भाजपा के विरोधी पार्टी को, क्योकि बीएसपी को दिया गया वोट तो भाजपा में ही जाने वाला है। ऐसी स्थिति में आगामी विधानसभा चुनाव में बीएसपी को अपने अस्तित्व को बचाये रखने में भी समस्या आ सकती है, क्योकि बीएसपी नेता मायावती ने विधानसभा चुनाव पूर्व ही अपने पत्ते खोल दिये है कि वह भाजपा के साथ हैं, इसलिए आने वाले समय मेें बीएसपी के टूटने के साथ ही मतप्रतिशत में भी गिरावट आने की संभावनाओं को बल मिला है। बंगाल चुनाव के तरह ही उत्तरप्रदेश का चुनाव सीधे सीधे सपा और भाजपा के मुकाबले में तब्दिल हो गया है, क्योकि कांग्रेस पहले ही उत्तरप्रदेश की राजनीति से गायब हो चुकी है।

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