मंत्रीमंडल का विस्तार केंद्रीय नेत्त्व के अनुसार होगा तो मुख्यमंत्री के अनुसार क्यो होगा?
क्या योगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के सामने नतमस्तक हो गये? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि कुछ दिनों पूर्व तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय को किनारा कर रहे थे, जिससे उनकी एक दमदार नेता की छवि बन गयी थी, जिसके चलते आगामी विधानसभा चुनाव योगी के नेत्त्व में ही लडऩे का फैसला लेने के साथ ही विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ नही लड़े जाने का फैसला आरएसएस ने लिया। योगी आदित्यनाथ के दिल्ली प्रवास के बाद जो खबरें निकल कर आ रही है वही यही संकेत दे रही है कि केंद्रिय नेत्त्व के आधार पर ही आगामी समय में उत्तरप्रदेश के मंत्रीमंडल का विस्तार किया जायेगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी नौकरशाह अरविंद शर्मा और कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद को भी मंत्रीमंडल में स्थान मिलेगा। राजनीतिक जानकारों की माने तो इस पूरे प्रकरण में सिर्फ योगी आदित्यनाथ सिर्फ अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी ही बचाने में सफल हो सके और कुछ नही, क्योकि अगर दिल्ली की सरकार कें्रदीय नेत्त्व के अनुसार चलेगी तो फिर योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री पद में होने का क्या महत्व है वही अभी तक यही संदेश जा रहा था कि योगी आदित्यनाथ किसी के दवाब में काम नही करते है लेकिन इस पूरी घटना के बाद स्पष्ट हो गया कि कुर्सी के लिए योगी आदित्यनाथ भी हर दबाव झेलने को तैयार हो गये है। चुनावी वर्ष में उत्तरप्रदेश में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम यही संकेत दे रहा है कि चुनावी वर्ष में केंद्रिय नेत्त्व योगी आदित्यनाथ के पर कुतरने का हर संभव प्रयास कर रहा है और मुख्यमंत्री अपने पद पर बने रहने के लिए हर दवाब झेलने का मजबूर है।