कई बुजुर्गो की 80 साल के बाद शारीरिक और मानसिक क्षमता कमजोर रहती है
चुनावी प्रक्रिया तक पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से एक सराहनीय कदम प्रशासन ने उठाया है। 80 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों के लिए डाक मतदान शुरू किया है। यह प्रयास यह सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण कदम है कि बुजुर्ग मतदाता, जिन्हें शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है । हालाँकि, इस पहल ने कई गंभीर प्रश्न और चिंताएँ खड़ी कर दी हैं। कई बुजुर्गो की 80 साल के बाद शारीरिक और मानसिक क्षमता कमजोर रहती है । ऐेसे में भावी नेता का चुनाव करने में उनकी बुद्धिमत्ता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
हालांकि प्रशासनिक इरादा सराहनीय है, लेकिन इस प्रयास की व्यावहारिकता को लेकर चिंताएं उभर रही हैं। इन बुजुर्ग मतदाताओं की छवियों को करीब से देखने पर पता चलता है कि कुछ को मतपत्रों को संभालने और उन्हें सही ढंग से रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इससे यह सवाल उठता है कि ऐसे में क्या वे अपने उम्मीदवारों का चयन कर पाएंगे। या मतपत्र पर मुहर लगाने में सक्षम होंगे।
इसके अतिरिक्त, अस्पताल में भर्ती व्यक्तियों के लिए डाक मतपत्रों के प्रावधान के संबंध में प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट समाचार नहीं आया है। सवाल उठना लाजमी है कि क्या ऐसे रोगियों के लिए मतदान का अधिकार का है या नहीं क्या इनके लिए डाक मतपत्रों जैसी कोई व्यवस्था की गई ? यह अनिश्चितता इस मुद्दे को जटिल बनाती है, क्योंकि प्रशासन बुजुर्ग नागरिकों के लिए मतदान की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिनके पास सामान्य आबादी के समान राजनीतिक समझ नहीं है।
बुजुर्गों के लिए मतदान प्रक्रिया अब सवालों के घेरे में घिरी हुई है, प्रशासन को इन सवालों का जवाब देने की जरूरत है ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया निर्बाध रूप से चल सके ।